प्रतिक्रिया नहीं, क्रिया

हिसाब लगाएं तो पता चलेगा कि हम तीन चौथाई से ज्यादा जीवन प्रतिक्रिया में जीते हैं। लेकिन प्रतिक्रिया नहीं, क्रिया-प्रधान जीवन होना चाहिए हमारा। दूसरे नहीं, हम ही तय करें कि हमें क्या करना है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *