हमारे शेयर बाजार में वेलस्पन नाम की पांच कंपनियां लिस्टेड हैं – वेलस्पन कॉर्प, वेलस्पन इंडिया, वेलस्पन इनवेस्टमेंट्स, वेलस्पन प्रोजेक्ट्स और वेलस्पन सिन्टेक्स। ये सारी की सारी एक ही समूह की कंपनियां है और इनके सामूहिक चेयरमैन बाल कृष्ण गोयनका हैं। आज यहां हम बात कर रहे हैं वेलस्पन कॉर्प की। यह बड़े व्यास की लंबी-लंबी पाइप बनानेवाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में शुमार है। भारत ही नहीं, दुनिया भर की तमाम पाइपलाइन परियोजनाओं को इसने पाइप सप्लाई किए हैं। यह 1995 में बनी तो इसका नाम वेलस्पन गुजरात स्टाह्ल रोहरेन लिमिटेड था। जाहिर है अब नहीं है।
कंपनी ने हफ्ते भर पहले 26 मई को अपने सालाना नतीजे घोषित किए। स्टैंड-एलोन रूप से देखें तो वित्त वर्ष 2010-11 में कंपनी की बिक्री 5.4 फीसदी घटकर 6627,34 करोड़ रुपए से 6269.44 करोड़ रुपए पर आ गई है, जबकि शुद्ध लाभ 540.20 करोड़ से 32.53 फीसदी घटकर 364.45 करोड़ रुपए पर आ गया है। इस दौरान उसका ईपीएस (प्रति शेयर मुनाफा) 25.18 रुपए से घटकर 16.94 रुपए पर आ गया है। लेकिन चूंकि वेलस्पन कॉर्प में देश के भीतर व बाहर सक्रिय आठ कंपनियां समेकित हैं। इसलिए शायद उसके कंसोलिडेटेड नतीजों को देखना ज्यादा उपयुक्त होगा।
इन समेकित नतीजों के अनुसार वित्त वर्ष 2010-11 में कंपनी ने 8023.63 करोड़ रुपए की बिक्री पर 633.03 करोड़ रुपए का मुनाफा कमाया है, जबकि इससे पिछले वित्त वर्ष 2009-10 में उसकी बिक्री 7363.67 करोड़ रुपए और शुद्ध लाभ 610.40 करोड़ रुपए का था। इस तरह उसकी बिक्री में 9 फीसदी और शुद्ध लाभ में 3.7 फीसदी का इजाफा हुआ है। कंपनी का कंसोलिडेटेड ईपीएस इस दरम्यान 28.40 रुपए से बढ़कर 28.66 रुपए हो गया है। कंपनी की ऑर्डर बुक साल भर पहले से 16 फीसदी घटकर 5400 करोड़ रुपए पर आ गई है।
इन अपेक्षाकृत रूप से खराब नतीजों की घोषणा के बाद हफ्ते भर में वेलस्पन कॉर्प का शेयर (बीएसई – 532144, एनएसई – WELCORP) गिरने के बजाय 171.90 रुपए से बढ़कर 177.65 रुपए पर पहुंच गया है। ब्रोकिंग फर्म एचडीएफसी सिक्यूरिटीज की एक रिपोर्ट का कहना है कि खराब नतीजों की वजह विदेशी ग्राहकों को भेजे पाइप में इस्तेमाल खराब कच्चे माल के लिए आउट-ऑफ कोर्ट किया गया 200 करोड़ रुपए का सेटलमेंट है जो केवल एक बार की बात है। इसलिए कंपनी की आगे की राह अच्छी है। वैसे भी उसे चालू वित्त वर्ष 2011-12 की एकदम शुरुआत में 1182 करोड़ रुपए के नए ऑर्डर मिले हैं और उसके पास अभी कुल 6153 करोड़ रुपए के अग्रिम ऑर्डर हैं।
एचडीएफसी सिक्यूरिटीज का आकलन है कि चालू वित्त वर्ष के अंत में कंपनी का ईपीएस 29 रुपए होगा। अगर हम 7 का भी पी/ई अनुपात पकड़ें तो बारह महीने में यह शेयर कम से कम 203 रुपए पर होना चाहिए। इस तरह मौजूदा स्तर से इसमें 14 फीसदी से ज्यादा की बढ़त संभव है। इस समय अगर हम कंसोलिडेटेड ईपीएस को देखें तो कंपनी का शेयर 6.19 और स्टैंड एलोन ईपीस को देखें तो 10.49 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। इस स्टॉक का अतीत देखें तो तीन साल पहले मई 2007 में यह 178.80 रुपए पर था। शेयर का अंकित मूल्य तब भी 5 रुपए था, अब भी 5 रुपए ही है।
बीच में जनवरी 2008 में यह 537.70 रुपए तक चला गया। लेहमान संकट के समय अक्टूबर 2008 में 74 रुपए तक लुढ़क गया। मार्च 2009 में तो मात्र 48.50 रुपए का रह गया। जून 2009 से यह नए ऑरबिट में गया और ऊपर में 243.70 रुपए तक चला गया। अक्टूबर 2010 में यह 275 रुपए पर था। लेकिन उसके बाद बराबर गिर रहा है। नए साल में 18 जनवरी 2011 को 144.35 रुपए पर उसने 52 हफ्ते की तलहटी पकड ली। अभी शेयर को उसी स्तर की रेंज में माना जाएगा।
क्या इस स्तर पर इसमें निवेश कर फायदा कमाया जा सकता है? एचडीएफसी सिक्यूरिटीज की राय तो आपने जान ही ली है। एक अन्य फर्म मैक्वॉयरी इक्विटीज रिसर्च का कहना है कि 12 महीने में वेलस्पन कॉर्प का शेयर 250 रुपए तक जा सकता है। इस तरह मौजूदा स्तर से इसमें 40 फीसदी से अधिक रिटर्न की गुंजाइश है। मैक्वॉयरी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कंपनी का अनुमानित ईपीएस वित्त वर्ष 2011-12 में 33.30 रुपए और वित्त वर्ष 2012-13 में 38.58 रुपए रह सकता है। उसने 7.5 का पी/ई लेकर साल भर में स्टॉक के 250 रुपए पर पहुंचने का अनुमान लगाया है।
सबकी अपनी-अपनी गणनाएं हैं। कंपनी भी उत्साह से भविष्य की शानदार तस्वीर पेश कर रही है। इन सारी गणनाओं के बीच आपकी गणना क्या कहती है? देखभाल लीजिए। तभी निवेश का फैसला कीजिए। वैसे ब्रोकर फर्म इडेलवाइस के आंकड़ों के अनुसार पिछले तीन सालों में वेलस्पन कॉर्प की बिक्री 41.93 फीसदी और लाभ 62.60 फीसदी की सालाना चक्रवृद्धि दर से बढ़ा है। मुझे तो इन आंकड़ों पर संदेह है। फिर भी आप खुद देख सकते हैं।
कंपनी की 102.33 करोड़ रुपए की इक्विटी में प्रवर्तकों का हिस्सा 41.07 फीसदी और पब्लिक का हिस्सा 58.63 फीसदी है। पब्लिक के हिस्से में से 23.10 फीसदी एफआईआई और 12.82 फीसदी घरेलू संस्थाओं या डीआईआई के पास हैं।