प्रोफेसर बसु रिजर्व बैंक को बता रहे हैं किताबी, प्रणबदा बजाते जा रहे ताली

एक हाथ जब दूसरे हाथ की ही फजीहत करने लग जाए तो इसे आप क्या कहेंगे? लेकिन अपनी सरकार का यही हाल है। एक तरफ रिजर्व बैंक महंगाई रोकने के लिए अपनी तरफ से हरसंभव उपाय किए जा रहा है, दूसरी तरफ वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु कह रहे हैं कि रिजर्व बैंक ने महंगाई रोकने के लिए परंपरागत किताबी उपायों को ही आजमाया है। इसलिए ये उपाय काम नहीं आए। मजे की बात यह है कि इस थुक्का-फजीहत में हमारे माननीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी दूर खड़े ताली बजा रहे हैं। उन्होंने हर बार की तरह एक बार फिर सोमवार को खाद्य मुद्रास्फीति को गंभीर चिंता का विषय बताया है।

बता दें कि कौशिक बसु वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी की तरह न केवल बंगाली मोशाय हैं, बल्कि उनके काफी करीबी भी माने जाते रहे हैं। कौशिक बसु अमेरिका की कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं और फिलहाल वहां से छुट्टी लेकर भारत सरकार में वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार की भूमिका निभा रहे हैं।

बसु ने रिजर्व के ‘किताबी ज्ञान’ की खिंचाई दो दिन पहले शनिवार को कोलकाता में की। मीडिया से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा, मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने के लिए रिजर्व बैंक द्वारा परंपरागत उपायों के इस्तेमाल को लेकर मैं चिंतित था। रिजर्व बैंक ने इस मामले मौद्रिक नीति की घोषणा करते हुए किताबी ज्ञान का रास्ता अपनाया।”

मुख्य आर्थिक सलाहकार ने कहा कि ब्याज दरें बढ़ाकर मुद्रास्फीति रोकने की मानक मुद्रास्फीति विरोधी नीतियां वांछित परिणाम दिखाने में विफल रहीं। गौरतलब है कि रिजर्व बैंक मार्च 2010 के बाद से महंगाई को काबू में लाने के लिए 13 बार रेपो व रिवर्स रेपो दर बढ़ा चुका है। इसी हिसाब से बैंक अपनी ब्याज दरें बढ़ाकर धन को महंगा करते चले गए। इससे मांग घटी जरूर। लेकिन सप्लाई सीमित रहने से दाम बढ़ते चले गए। खासकर खाद्य वस्तुओं की महंगाई बढ़ती चली गई। ताजा आंकड़ों के मुताबिक 22 अक्टूबर को समाप्त सप्ताह में इसकी दर 12.21 फीसदी रही है जो नौ महीनों का रिकॉर्ड शिखर है।

बसु ने कहा कि अर्थव्यवस्था से अतिरिक्त तरलता या नकदी सोखने के लिए ब्याज दरों में वृद्धि करना आर्थिक गतिविधियों के लिए नुकसानदायक हो सकता है। खाद्य पदार्थों की लगातार ऊंची मुद्रास्फीति पर उन्होंने कहा कि तीन सप्ताह के भीतर यह नीचे आएगी और सकल मुद्रास्फीति दिसंबर से कम होगी।

असल में बसु की बातें सही हो सकती हैं। लेकिन वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार का इस तरह देश के केंद्रीय बैंक को किताबी बताना यही दर्शाता है कि सरकार में कोई एकता नहीं है, सही नेतृत्व का अभाव है खासकर आर्थिक नीतियों के मामले में। कमाल है कि यह सब हमारे अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के दूसरे कार्यकाल में हो रहा है।

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