साल 2009 में एशिया में करोड़पतियों की संख्या बढ़कर 30 लाख हो गई है और यह आज तक के इतिहास में पहली बार यूरोप की बराबरी में आई है। यही नहीं, एशिया के करोड़पतियों की कुल संपत्ति 9.7 लाख करोड़ डॉलर रही है जबकि यूरोप के करोड़पतियों की कुल संपत्ति 9.5 लाख करोड़ डॉलर ही रही है। यह निष्कर्ष है मेरिल लिंच-कैपगेमिनी की ताजा वर्ल्ड वेल्थ रिपोर्ट का। रिपोर्ट ने चुटकी लेते हुए कहा है कि जब साल 2009 में दुनिया दशकों की सबसे बुरी मंदी के दौर से गुजर रही थी, तब अमीरों की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ा और वे पहले से ज्यादा अमीर हो गए। इस दौरान दुनिया के करोड़पतियों की संपदा 19 फीसदी बढ़कर 39 लाख करोड़ डॉलर पर पहुंच गई है।
सबसे ज्यादा बढ़त भारत, चीन व ब्राजील में दर्ज की गई है। असल में लैटिन अमिरका व एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों में अमीरी में अब तक की रिकॉर्ड वृद्धि हुई है। वैसे, इस समय सबसे ज्यादा 28.7 लाख करोड़पति अमेरिका में हैं। इसके बाद जापान में 16.5 लाख, जर्मनी में 8.61 लाख और चीन में 4.77 लाख करोड़पति हैं। स्विटजरलैंड में करोड़पतियों का घनत्व सबसे ज्यादा है। वहां हर 1000 वयस्क लोगों पर 35 लोग करोड़पति हैं।
सर्वे पर आधारित इस अध्ययन रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि 2009 में जोखिम उठाने के बजाय विकसित देशों के अमीर लोगों ने ज्यादा धन एफडी जैसे निश्चित आय वाले माध्यमों में लगाया। यहां तक कि बैंक बचत खातों में रखा जिसमें बमुश्किल 1 फीसदी सालाना ब्याज मिलता है। इस समय ब्रोकरों के सामने चुनौती है कि कैसे वे इन लोगों को दोबारा इक्विटी व म्यूचुअल फंड जैसे ज्यादा जोखिमवाले निवेश माध्यमों की तरफ खींचकर लाएं। अभी तक लोगों का भरोसा फाइनेंशियल एडवाइजरों और नियामकों के प्रति डिगा हुआ है।
यूरोप व अमेरिका के आम निवेशकों की स्थिति यह है कि अपने देश के बजाय एशियाई बाजारों में धन लगाना चाहते हैं। हालांकि यूरोप के अमीर अमेरिका व कनाडा में अपनी होल्डिंग बढ़ा रहे हैं।