‘अण्णा का रास्ता संसदीय लोकतंत्र के लिए खतरा’

ऐसा कोई संवैधानि‍क दर्शन या सि‍द्धांत नहीं है, जि‍ससे कानून बनाने के लि‍ए मात्र संसद को मि‍ले वि‍शेषाधि‍कार पर सवाल उठाने की किसी को अनुमति‍ दी जा सकती हो। लोकपाल पर कानून बनाने की प्रक्रि‍या में सरकार ने निर्धारित सि‍द्धांतों का पालन कि‍या है। लेकिन अण्णा हज़ारे इन्‍हीं सि‍द्धांतों पर सवाल उठा रहे हैं और समझते हैं कि‍ उन्‍हें अपना जन लोकपाल वि‍धेयक संसद पर थोपने का अधि‍कार है।

यह कहना है प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का। उन्होंने बुधवार को अण्णा के आंदोलन पर संसद में वक्तव्य देते हुए कहा, “मैं यह मान सकता हूं कि ‍एक मजबूत और प्रभावी लोकपाल की स्‍थापना के लि‍ए वे (अण्णा) अपने अभि‍यान में उच्‍च आदर्शों से प्रेरि‍त हैं, लेकि‍न वि‍धेयक का अपना प्रारूप संसद पर थोपने के लि‍ए उन्‍होंने जो रास्‍ता चुना है, वह पूरी तरह से गलत है और हमारे संसदीय लोकतंत्र के लि‍ए गंभीर परि‍णामों से भरा है।”

प्रधानमंत्री ने बराबर इस बात की कोशिश की कि अण्णा हज़ारे को अलोकतांत्रिक और संसद की मर्यादा को तोड़नेवाला साबित कर दिया जाए। उन्होंने कहा, “लम्‍बे समय से चली आ रही व्‍यवस्‍था के अनुसार सरकार ही वि‍धेयक का प्रारूप तैयार करती है, संसद के सामने रखती है और संसद बहस के बाद और अगर संशोधन जरूरी हों तो संशोधनों के साथ, वि‍धेयक को पास करती है। वि‍धेयक पास होने की प्रक्रि‍या के दौरान अण्णा हजारे और अन्‍य लोगों के पास अपने वि‍चार संसद की स्‍थाई समि‍ति ‍के सामने रखने के अवसर होंगे।” लेकिन हज़ारे इसके लिए तैयार नहीं हैं।

उन्होंने कहा कि संसद में वि‍धेयक रखे जाने की परवाह न करते हुए अण्णा हजारे और उनके समर्थक इस बात पर जोर दे रहे हैं कि‍ उनके द्वारा तैयार कि‍या गया जन लोकपाल वि‍धेयक प्रारूप संसद में पेश कि‍या जाए और संसद उसे पास करे। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने थोड़ा धमकी भरे अंदाज में कहा, “हमारी सरकार समाज के कि‍सी भी वर्ग से टकराव नहीं चाहती। लेकि‍न जब समाज के कुछ वर्ग सरकार के अधि‍कार को और संसद के वि‍शेषाधि‍कार को जानबूझ कर चुनौती देते हैं तो यह सरकार का नि‍श्‍चि‍त कर्तव्‍य हो जाता है कि‍ वह शांति‍-व्‍यवस्‍था बनाए रखे। …हमारे पास कोई ऐसी जादू की छड़ी नहीं है कि‍ एक ही वार से भ्रष्‍टाचार का खात्‍मा कि‍या जा सके।”

अपने वक्तव्य के दौरान मनमोहन सिंह ने इशारों ही इशारों में अण्णा के आंदोलन के पीछे भारत-विरोधी ताकतों का हाथ होने की बात कह दी। उनके शब्दों में, “भारत एक उभरती हुई अर्थव्‍यवस्‍था है। वि‍श्‍व मंच पर भारत एक महत्‍वपूर्ण भूमि‍का नि‍भाने के लि‍ए उभर रहा है। कई ऐसी ताकतें हैं जो यह नहीं चाहेंगी कि‍ भारत को अंतरराष्‍ट्रीय समुदाय में उसका वास्‍तवि‍क स्‍थान मि‍ले। हमें ऐसे तत्‍वों के हाथ में नहीं खेलना चाहि‍ए।”

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