सफल हुई आंध्रा पेट्रोकेम की साधना

आंध्रा पेट्रोकेमिकल्स ने दो दिन ही पहले जबरदस्त नतीजे घोषित किए हैं। उसने चालू वित्त वर्ष 2011-12 की पहली तिमाही में 157.22 करोड़ रुपए की बिक्री पर 12.68 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया है, जबकि साल भर पहले जून 2010 की तिमाही में उसने 72.96 करोड़ रुपए की बिक्री पर 4.31 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ ही कमाया था। हालांकि दोनों नतीजों की तुलना नहीं हो सकती क्योंकि पिछले साल संयंत्र के क्षमता विस्तार व आधुनिकीकरण के बाद उसने अप्रैल महीने में केवल परीक्षण उत्पादन किया था और 1 मई से ही व्यावसायिक उत्पादन शुरू हुआ था। इस तरह वास्तव में पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में तीन के बजाय केवल दो महीने ही उत्पादन हुआ था।

लेकिन इन नतीजों ने साफ कर दिया है कि कंपनी अपनी सारी कमियां धो-पोछकर अब विकास की मजबूत डगर पकड़ चुकी है। असल में 2009-10 तक वह घाटे में थी। उस साल उसने 137.14 करोड़ रुपए की बिक्री पर 5.38 करोड़ रुपए का घाटा खाया था। लेकिन खुद को चुस्त-दुरुस्त करने के बाद उसने 2010-11 में 456.59 करोड़ रुपए की बिक्री पर 35.64 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमा लिया और उसका प्रति शेयर लाभ (ईपीएस) ऋणात्मक से निकलकर 4.19 रुपए हो गया। जून 2011 की तिमाही के नतीजों को जोड़ दें तो उसका ठीक पिछले बारह महीनों (टीटीएम) का ईपीएस 5.18 रुपए हो जाता है।

कंपनी का दस रुपए अंकित मूल्य का शेयर फिलहाल केवल बीएसई (कोड – 500012) में लिस्टेड है। लगातार अच्छे नतीजों की घोषणा के बावजूद इस साल अप्रैल के 34.10 रुपए से घटकर कल, 2 अगस्त को 30.80 रुपए पर बंद हुआ है। हालांकि एक महीने पहले 1 जुलाई  को तो वह 27.70 रुपए पर बंद हुआ था। जानकारों का आकलन है कि तीन महीने के भीतर यह 57 रुपए तक जा सकता है।

इसका पूरा वाजिब आधार भी है। यह शेयर फिलहाल 5.95 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। कंपनी घाटे से निकलकर सही ट्रैक पर आ चुकी है। इसकी प्रतिद्वंद्वी कंपनियों में टाटा केमिकल्स का शेयर 23.03, अमीन्स एंड प्लास्टिसाइजर्स 12.75, बोडाल केमिकल्स 17.44 और गणेश बेंजोप्लास्ट का शेयर 29.29 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। क्षमता विस्तार के बाद आंध्रा पेट्रोकेमिकल्स देश में ऑक्सो-एल्कोहल की तकरीबन 55 फीसदी मांग पूरी करने में सक्षम हो गई है, जबकि पहले उसकी क्षमता 27 फीसदी ही मांग पूरी करने भर की थी।

कंपनी का गठन 1984 में निजी क्षेत्र की कंपनी आंध्रा शुगर्स ने सरकारी संस्थान आंध्र प्रदेश औद्योगिक विकास निगम (एपीआईडीसी) के साथ मिलकर किया था। उसने शुरुआत विशाखापट्टनम में 30,000 टन सालाना क्षमता के संयंत्र से किया। वह इसमें ऑक्सो-एल्कोहल (2-एथाइल हेक्सानॉल, एन-बूटानॉल व आइसो-बूटानॉल) बनाती है। कंपनी ने साल भर पहले ही 273 करोड़ रुपए की लागत से इस संयंत्र का क्षमता विस्तार व आधुनिकीकरण किया है। उसकी मौजूदा क्षमता अब 73,000 टन सालाना पर पहुंच गई है। यह ऐसा स्तर है जहां से वह अच्छी-खासी मजबूती व लाभप्रदता की स्थिति में आ गई है।

कंपनी द्वारा बनाए ऑक्सो-एल्कोहलों का इस्तेमाल प्लास्टिसाइजर, सॉल्वेंट एक्सट्रैक्शन, एक्रिलेट्स, लुब्रिकेंट, खनन, सरफैक्टैंट, डिटरजेंट, अधेसिव, रबर केमिकल, प्रिटिंग इंक, रेजिन, वार्निश, पेंट, पेस्टीसाइड व फार्मा जैसे तमाम उद्योगों में होता है। वह मुख्य कच्चे माल के रूप नैप्था और प्रोपिलीन का इस्तेमाल करती है जो वह विशाखापट्टनम में ही हिंदुस्तान पेट्रोलियम (एचपीसीएल) की रिफाइनरी से हासिल कर लेती है। कंपनी नई क्षमता व कलेवर के बाद विश्वस्तर पर प्रतिस्पर्धी हो गई है। ऑक्सो-एल्कोहलों की मांग प्लास्टिक व पेंट जैसे उद्योगों की बढ़ती मांग के साथ बढ़ती ही जानी है। इसलिए आंध्रा पेट्रोकेमिकल्स में अभी निवेश करना सुरक्षित व फायदे का सौदा साबित होगा। बाद में शेयर भागकर कहां पहुंच जाए, कुछ नहीं कहा जा सकता।

कंपनी की 84.97 करोड़ रुपए की इक्विटी का 56.89 फीसदी हिस्सा पब्लिक और बाकी 41.11 फीसदी प्रवर्तकों के पास है। एफआईआई व डीआईआई का निवेश क्रमशः 0.24 व 0.19 फीसदी के मामूली स्तर पर है। आप यकीन नहीं मानेंगे कि इसके प्रवर्तकों में 104 नाम शामिल हैं। लेकिन इनमें से खास तीन ही हैं – आंध्रा शुगर्स जिसके पास कंपनी के 28.98 फीसदी शेयर हैं, एपीआईडीसी जिसके पास 10.80 फीसदी शेयर हैं और जोसिल लिमिटेड जिसके पास कंपनी के 1.19 फीसदी शेयर हैं। कंपनी के कुल शेयरधारकों की संख्या 85,845 है। इनमें से तीन बड़े शेयरधारक राजेंद्र प्रसाद गुप्ता (1.45 फीसदी), कन्हैयालाल जैन (1.16 फीसदी) और केएलजे प्लास्टिसाइजर्स (1.54 फीसदी) हैं।

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