अमेरिका में ऋण-सीमा बढ़ाने का मुद्दा अब इतिहास बन चुका है। मूडीज ने बिना रेटिंग बदले अमेरिका को डाउनग्रेड कर दिया है। नतीजतन अमेरिकी बाजार कल धड़ाम हो गए। यह सब तो निपट गया। अब आगे क्या? अब आप अमेरिकी बाजार को लेकर क्या बहस करेंगे? क्या आप अब भी भारत में बेचते रहेंगे क्योंकि कौन जानता है कि अमेरिका का अगला डाउनग्रेड तीन महीने बाद ही हो जाए?
ध्यान रखें कि अमेरिकी बाजार में भरपूर लोच है और इतने गिरावट के बाद भी वह पलटकर उठेगा। बहुत मुमकिन है कि आज रात ही अमेरिकी बाजार शॉर्ट कवरिंग के चलते ज्यादातर खोया आधार फिर से हासिल कर लें। लेकिन हम क्या करनेवाले हैं? क्या हम कल 5500 पर कवरिंग करेंगे? फिलहाल तो निफ्टी 0.95 फीसदी गिरकर आज 5404.80 पर बंद हुआ है।
अब आगे भारत में क्या होना है? कंपनियों के लाभार्जन का अनुमान घटाया जा चुका है। जीडीपी को भी पहले से नीचे लाया चुका है। हालांकि कोई भी देशी-विदेशी फंड ऐसा नहीं है जिसका जीडीपी के सही अनुमान को लेकर अच्छा ट्रैक रिकॉर्ड रहा हो। वास्तव में वे उन्हीं जानकारियों के आधार पर अनुमान लगाते हैं जो सार्वजनिक तौर पर सबको पता हैं, जबकि असली फर्क उन आंकड़ों से पड़ता है जो सरकार घोषित करती है। यह बात इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि सरकार के पास ऐसे आंकड़े हैं जो इन फंडों के पास नहीं हैं। इसलिए जब भी इन फंडों ने बड़े-बड़े दावे किए हैं, वे बुरी तरह मुंह के बल गिरे हैं।
सबूत के लिए थोड़ा अतीत में जानना काफी रहेगा। लेहमान ब्रदर्स के संकट के बाद सभी ने भारत के जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में विकास का अनुमान घटाकर 5 फीसदी से नीचे कर दिया था। शंकर शर्मा ने तो यहां तक कह दिया था कि भारत में अब जीडीपी की विकास दर 3 फीसदी पर आ जाएगी। सारा कुछ बकवास निकला। जैसे इतना काफी नहीं तो इन अति-शिक्षित सफेदपोश विदेशी फंडों व ब्रोकरों ने रिपोर्ट निकाल दी थी कि रुपया गिरते-गिरते डॉलर के सापेक्ष 57 रुपए पर पहुंच जाएगा। लेकिन उनकी रिपोर्ट जिस दिन आई, उसी दिन रुपया यू-टर्न लेकर डॉलर के सापेक्ष महंगा होकर 44 रुपए पर पहुंच गया। कितना अजीब लगता है यह सब!!
चलिए, अगर आप अतीत में नहीं झांकना चाहते तो अभी हाल में इन्हीं विशेषज्ञों द्वारा कच्चे तेल पर फेंके गए अनुमानों पर गौर कर लीजिए। इन्होंने कहा था कि कच्चा तेल 135 से 140 डॉलर प्रति बैरल तक चला जाएगा। लेकिन यह तो गिरकर 94 से 110 डॉलर पर आ गया!! क्या वे सचमुच इतने विशेषज्ञ हैं जो चीजें उनके वश में नहीं हैं, उन पर भी टिप्पणी कर सकें? मुझे तो लगता है कि उन्हें खुद को बस निफ्टी और स्टॉक्स के अनुमान तक सीमित रखना चाहिए क्योंकि उनका दायरा वहीं तक सीमित है।
मैं यह बात अच्छी तरह समझता हूं कि बाजार व अर्थव्यवस्था बराबर गतिशील हैं और इनमें हर दिन बदलाव आता रहता है। लेकिन हमारे बाजार की दुर्दशा की वजह और कुछ नहीं, बल्कि स्पष्ट दिशानिर्देश का अभाव और कुछ निहित स्वार्थ हैं। मुझे एक वजह बता दीजिए कि फंड क्यों वीआईपी इंडस्ट्रीज जैसी ट्रेडिंग कंपनी के शेयर क्यों खरीदे जा रहे हैं जो चीन से सारा माल मंगाकर भारत में लगेज बैग बेचती है? क्या किसी भी फंड ने वीआईपी के स्टोर से एक भी लगेग बैग खरीदा है? मुझे इसमें संदेह है।
इस समय बाजार में एक मजेदार जुमला चल रहा है कि रिश्वतखोरी कम से कम फिलहाल के लिए थम-सी गई है तो लगेज बैग की मांग घटने लगेगी। खैर, ये जुमले व चुटकुले अपनी जगह। मुझे अब भी लगता है कि वीआईपी के स्टॉक में कोई मूल्य नहीं बचा है। इससे निकलकर लोगों को क्लैरिएंट केमिकल्स खरीद लेना चाहिए जो अगले एक साल में 1600 रुपए तक जा सकता है।
हम जो कुछ देखते हैं या हमें दिखता है, वह कुछ नहीं, बल्कि सपने के अंदर का सपना है। यह सच हो या न हो। लेकि मानने में क्या हर्ज है!!!
(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होंगे। यह मूलत: सीएनआई रिसर्च का फीस-वाला कॉलम है, जिसे हम यहां मुफ्त में पेश कर रहे हैं)