क्या आनेवाले दिनों में बाज़ार में बिकवाली का दबाव बढ़ेगा क्योंकि निफ्टी 5690 का समर्थन स्तर तोड़कर नीचे जा चुका है? ये सवाल हर किसी के दिमाग में नाच रहा है। बहुत से लोग इसका जवाब हाँ मानते हैं। लेकिन इससे निचले स्तरों पर खरीद के अवसर बढ़ गए हैं। ऐसा माननेवालों में से बहुत से लोग ऐसे हैं जिनके पास 25 से 50 फीसदी कैश है। इसलिए उनकी राय को अनुचित नहीं माना जा सकता। 5368 इस समय 200 एसडीए है व 5550 और 5500 ऐसे स्तर हैं जहाँ पर तमाम फंड खरीदारी का इंतज़ार कर रहे हैं।
समाचार एजेंसी ब्लूमबर्ग के विश्लेषकों के ताज़ा सरवे के मुताबिक सेंसेक्स कंपनियों का शुद्ध लाभ अगले बारह महिनों में 13 फीसदी बढ़कर सम्मिल्त रुप से प्रति शेयर 1,224 रुपए हो जाएगा। जिसका मतलब हुआ कि बाज़ार अभी 15 के पी/इ अनुपात पर ट्रेड हो रहा है जो पिछले 15 सालों का औसत है। इसलिए बाज़ार में गिरावट की आशंका बहुत कम है।
फिर भी राजनीतिक अनिश्चितता से लेकर मुद्रा-स्फीति जैसे मसलों ने बाज़ार में डर पैदा कर दिया है जिसके चलते कैश-संपन्न निवेशक पैसा नहीं लगा रहें हैं। मेरा मानना है कि ये सारे नकारात्मक पहलू बाज़ार आत्मसात कर चुका है। मुश्किल यह है कि कैश से भरे फंड या निवेशक तब अपना पैसा बाज़ार में डालेंगे जब सेंसेक्स 23,000 अंक पर पहुँच चुका होगा। मुझे ऐसा इसलिए लगता है क्योंकि वे हमेशा से ऐसा ही करते आएं हैं।
रिज़र्व बैंक के गवर्नर डी. सुब्बाराव, 25 जनवरी को मौद्रिक-नीति की तीसरी त्रैमासिक समीक्षा में रेपो की दर बढ़ाकर 6.5 फीसदी कर देंगे इस बात की पूरी उम्मीद है और इससे देश के आर्थिक विकास पर तत्काल कोई असर नहीं पडेगा।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 1000 टन प्याज के आयात की इजाज़त दे दी है। उन्होंने अगले हफ्ते पेट्रोलियम ऑयल पर ड्यूटी घटाने के लिए एक बैठक बुलाई है और हो सकता है कि मौजूदा कृषि मंत्री को हटाकर उनकी जगह मंत्रि-मंडल में और किसी को ले आया जाए। मुद्रा-स्फीति को नीचे लाने की कोशिशों का असर दिख सकता है। इससे उन 83 करोड़ भारतियों को फायदा मिलेगा जिनकी दिनभर की कमाई मात्र 2 डॉलर है। पीडीएस को दुरुस्त करने के लिए नई नीति की ज़रुरत है। सरकार को चाहिए कि मुद्रा-स्फीति पर काबू पाने के लिए अपने भंडारों में रखा अतिरिक्त अनाज पीडीएस के ज़रिए लोगों में वितरित करे। साथ-ही कुछ समय के लिए जिंसों की फ्युचर ट्रेडिंग पर रोक लगा दे और आवश्यक वस्तुओं की जमाखोरी के खिलाफ कार्यवाही करे।
मुद्रा-स्फीति और मौजूदा राजनीतिक हालात ऐसी बातें नहीं हैं जिनके चलते हम हड़बड़ी में पूँजी बाज़ार से निकल जाएं। मुद्रा-स्फीति को नीचे लाने में वक्त लगेगा लेकिन ये काबू में आ जाएगी। राजनीतिक अनिश्चितता जान-बूझकर पैदा की जा रही है और चाहें तो इसे चुटकी में हल किया जा सकता है। मसला यह है कि क्यों कुछ लोगों ने जब निफटी 5850 पर था तब 35 लाख शेयरों के वॉल्यूम के साथ इसे तोड़कर 5690 के स्तर पर पहुँचा दिया। पूरी प्रणाली में यह क्षमता थी कि वो निफ्टी में 5700 अंक तक 100 साख शेयरों का वॉल्यूम पचा सकता था। पर ऐसा नहीं हुआ। इसकी वजह समझ से बाहर है।
इस सैटलमेंट में 7 दिन और बचें हैं और यह पूरा दौर बाज़ार में तकलीफ और फायदे का हो सकता है।
जिसे आप शिद्दत से चाहते हैं उससे कभी पीछे न हटो। जो बहुत वास्तविकता के चक्कर में पड़ते हैं उनसे और ज़्यादा ताक़तवर वो लोग होते हैं जो बड़े ख्वाब देखते हैं।
(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। यह कॉलम मूलत: सीएनआई रिसर्च से लिया जा रहा है)