गुजरात के मुख्यमंत्री और भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्य़ाशी नरेंद्र मोदी साल 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले बढ़-चढ़कर दावा करते थे कि सत्ता में आने पर रोजगार के अवसरों की बाढ़ ला देंगे। तब हर तरफ खबरें आती थी कि भारत में हर साल एक से डेढ़ करोड़ नए नौजवान रोजगार की लाइन में लग जाते हैं। मोदी ने दो कदम आगे बढकर कहा था कि वे अपनी सरकार बनने पर हर साल दो करोड़ नौकरियां सृजित करेंगे। दस साल बीत गए। लेकिन कुल मिलाकर निल-बटे सन्नाटा। मुद्रा लोन से नौकरियां देने के वादे की लीपापोती की जाती है। लेकिन ज़मीनी स्तर पर नौकरियों का अकाल छाया हुआ है। खुद सरकार का आवधिक श्रम शक्ति सर्वेक्षण (पीएलएफएस) कहता है कि 2013-14 में बेरोज़गारी की दर 3.4% थी। यह 2022-23 तक घटकर 3.2% पर पहुंची है। वहीं, सीएमआईई के मुताबिक मार्च 2024 में बेरोज़गारी की दर 7.6% रही है। वैसे, बेरोज़गारी के ये सारे आंकड़े बड़े हास्यास्पद हैं। दुनिया भर में बेरोज़गार उनको माना जाता है जो रोजगार की लाइन में लगे हों और जिन्होंने सरकारी तंत्र में खुद को रजिस्टर करा रखा हो। अपने यहां तो 54% लोगों ने खुद को श्रम शक्ति से बाहर रख रखा है। बाकी 46% में आधे से ज्यादा स्व-रोज़गार करते और मरते-खपते रहते हैं। अब मंगलवार की दृष्टि…
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