विकास इतना क्षुद्र, संकीर्ण, स्वार्थी क्यों?

विकास का इतना छोटा, स्वार्थी व बेहद सकीर्ण नज़रिया आखिर खुद के राष्ट्रवादी होने का डंका पीटनेवाली किसी पार्टी और सरकार का कैसे हो सकता है? लेकिन हकीकत यही है कि मोदी सरकार के पिछले 11 साल में मुठ्ठी भर कॉरपोरेट घरानों का धंधा, मुनाफा व साम्राज्य दिन दूना, रात चौगुना की रफ्तार से बढ़ा है। मगर, देश का व्यापक मजदूर, किसान, अवाम व मध्यवर्ग ही नहीं, उनके उपभोग पर टिका कॉरपोरेट क्षेत्र भी अब त्राहिमाम कर रहा है। सरकार को सब साफ-साफ दिखता है। इसीलिए वो इसकी लीपोपोती या क्षतिपूर्ति के लिए 81.35 करोड़ गरीबों को मुफ्त अनाज, किसानों को सालाना ₹6000 की सम्मान निधि, मध्यवर्ग से लिए हिंदू-मुस्लिम का उन्माद और कॉरपोरेट क्षेत्र के लिए पीएलआई स्कीम जैसी खुराक पेश कर रही है। आग भड़कने न पाए, इसलिए उस पर पानी की बूंदें छिड़कते रहो। लेकिन रोज़गार, उपभोग व समृद्धि बढ़ाने के लिए जो नीतिगत फैसले होने चाहिए, वे एक सिरे से नदारद हैं। दिक्कत यह है कि मोदी सरकार के किसी मंत्री-संत्री को इसकी परवाह तक नहीं, न ही कहीं कोई जवाबदेही है। मीडिया सवाल पूछता नहीं। जो सवाल पूछता है, उसे सीन से साफ कर दिया जाता है। इसलिए सरकार बेधड़क लम्बी ही लम्बी फेंकती रहती है। अब शुक्रवार का अभ्यास…

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