डीलिस्ट क्यों ना होत्ती गोकलदास!

गोकलदास एक्सपोर्ट्स का शेयर लंबे अरसे से 90-95 कर रहा है। बीच-बीच में कुछ हल्ला मचाकर इसे उठाया जाता है। फिर यह ठंडा पड़ जाता है। चार महीने पहले 10 मार्च को अचानक हल्ला उठा कि ब्लैकस्टोन ग्रुप कंपनी का प्रबंधन अपने हाथ में लेने जा रहा है। शेयर खटाक से उसी दिन 20 फीसदी ऊपरी सर्किट तक बढ़कर 94.95 रुपए से 113.90 रुपए पर पहुंच गया। अगले दिन 11 मार्च को 129.40 रुपए पर जाने के बाद 123.01 रुपए पर बंद हुआ। फिर गिरना शुरू हुआ तो दो हफ्ते में वापस पुराने भाव 95 रुपए पर पहुंच गया। फिलहाल उस पर सर्किट की सीमा 10 फीसदी कर दी गई है।

किसी को क्यों नहीं कौंधा कि जिस कंपनी में ब्लैकस्टोन ग्रुप ने पहले ही मॉरीशस में बनी कंपनी के जरिए 68.27 फीसदी इक्विटी ले रखी हो और भारतीय प्रवर्तकों के पास केवल 20 फीसदी इक्विटी हो, वो भी आज से नहीं, पिछले करीब साढ़े तीन सालों से, उसका प्रबंधन तो परोक्ष रूप से ब्लैकस्टोन के हाथ में ही होगा। लेकिन यहां तो कौआ कान ले गया, का हल्ला मचता रहता है। कल सोमवार, 11 जुलाई को फिर कहा गया कि गोकलदास एक्सपोर्ट्स में कायाकल्प बस होने ही वाला है तो उसका शेयर बीएसई (कोड – 532630) में 2.36 फीसदी बढ़कर 99.80 रुपए और एनएसई (कोड – GOKEX) में 1.70 फीसदी बढ़कर 98.80 रुपए पर पहुंच गया।

बता दें कि गोकलदास एक्सपोर्ट्स ने अप्रैल 2005 में आईपीओ के जरिए 132.81 करोड़ रुपए जुटाए थे। इसके तहत उसने अपने दस रुपए अंकित मूल्य के 31.25 लाख शेयर 425 रुपए पर जारी किए थे। इश्यू के बाद 17.19 करोड़ रुपए की इक्विटी में पब्लिक की हिस्सेदारी 18.18 फीसदी थी। 15 फरवरी 2007 से शेयर को दो हिस्सों में बांटकर 5 रुपए अंकित मूल्य का बना दिया। इसी के साथ शेयर घटकर 625 रुपए से सीधे 295 पर आ गया।

अगस्त 2007 आते-आते ब्लैकस्टोन ने प्रवर्तकों के साथ कंपनी की 50.1 फीसदी इक्विटी खरीदने का करार कर डाला और प्रति शेयर 275 रुपए का मूल्य दिया। 20 अगस्त 2007 को यह करार हुआ। उस दिन शेयर का बाजार भाव 228.70 रुपए था। हालांकि कुछ महीने तक यह 350 रुपए पर झूम रहा था। इसके बाद नियमतः ब्लैकस्टोन ने कंपनी के और 20 फीसदी शेयर खरीदने के लिए ओपन ऑफर भी पेश किया।

ओपन ऑफर समेत इस अधिग्रहण पर कुल लगभग 16.5 करोड़ डॉलर (~800 करोड़ रुपए) खर्च करनेवाले प्राइवेट इक्विटी निवेशक ब्लैकस्टोन की भारतीय शाखा के प्रमुख अखिल गुप्ता ने उस वक्त कहा था कि उन्हें गोकलदास की विकास संभावनाओं ने खींचा है और दुनिया में 2005 से कपड़ों में कोटा प्रणाली खत्म हो जाने से भारत के टेक्सटाइल निर्यातकों के सामने जबरदस्त संभावनाएं हैं। शायद इसी संभावना का दोहन करने के लिए गोकलदास एक्सपोर्ट्स 2005 में ही पूंजी बाजार में उतरी थी।

करीब चार साल पहले हुए इस अधिग्रहण के बाद ही कंपनी के बोर्ड का पुनर्गठन किया गया था। लेकिन मुख्य प्रवर्तक मदनलाल हिंदुजा उसके चेयरमैन, राजेंद्र हिंदुजा प्रबंध निदेशक और दिनेश हिंदुजा कार्यकारी निदेशक बने रहे। बता दें कि इस हिंदुजा परिवार का अशोक लेलैंड वाले हिंदुजा समूह के कोई वास्ता नहीं है। अखिल गुप्ता कंपनी के एक निदेशक हैं। बाकी बोर्ड का ढांचा तब से लेकर अब तक वैसा ही है। हां, इधर 25 मई 2011 को वित्त वर्ष 2010-11 के नतीजों के घोषणा के साथ ही ब्लैकस्टोन इंडिया के नुमाइंदे रिचर्ड बी सैल्डान्हा को कंपनी का गैर-कार्यकारी चेयरमैन जरूर बना दिया है।

इस बीच भारत के सबसे बड़े टेक्सटाइल निर्यातक होने का दावा करनेवाली 32 साल पुरानी कंपनी गोकलदास की हालत खराब होती गई। अब भी ब्लैकस्टोन द्वारा देखी संभावनाएं कहीं आकार लेतीं नहीं दिख रही हैं। कंपनी को 2009-10 में 1068.74 करोड़ रुपए की बिक्री पर 1.93 करोड़ रुपए का घाटा हुआ था। बीते साल 2010-11 में उसे लगभग इतनी ही 1079.53 करोड़ रुपए की बिक्री पर उसका घाटा बढ़कर 88.08 करोड़ रुपए हो गया। सवाल उठता है कि 2007 से कंपनी की प्रमुख मालिक बनी ब्लैकस्टोन जब अब तक कंपनी को नहीं बचा पाई तो अचानक प्रबंधन को कैसे बदलकर वह कोई चमत्कार कर सकती है?

वैसे भी कंपनी में जबरदस्त निराशा भरी हुई है। मई में सालाना नतीजों की घोषणा के बाद जारी एक नोट में उसने कहा था कि परिधान उद्योग तमाम चुनौतियों से घिरा है। कपास के बढ़ते दाम और बढ़ती मजदूरी मुनाफे पर चोट कर रही है। बाजार की हालत भी अच्छी नहीं है। विदेशी ग्राहक अपना ऑर्डर घटा रहे हैं क्योंकि उनकी खुदरा बिक्री बढ़ नहीं रही है। हालांकि इधर कपास के दामों में आती कमी थोड़ी राहत की बात है। गौरतलब है कि बैंगलोर की कंपनी गोकलदाल एक्सपोर्ट्स की 46 फैक्ट्रियां कर्नाटक में हैं और वह बने-बनाए परिधान व कपड़े दुनिया के तमाम मशहूर ब्रांडों – नाइके, एडिडास, गैप, टॉमी हिलफिगर और एबरक्रॉम्बी एंड फिच जैसों को सप्लाई करती रही है। लेकिन इस उद्योग में एंट्री बैरियर इतना कम है कि कोई भी कंपनी कभी भी घुसकर बड़े-बड़ों को मात दे सकती है। बांग्लादेश तक की कंपनियों ने निर्यात के मामले में भारत को तगड़ी टक्कर दे रखी है।

कुल मिलाकर स्थिति यह है कि 2005 में सितारे जैसी संभावनाएं लेकर बाजार में उतरी गोकलदास एक्सपोर्ट्स से अब कोई उम्मीद रखना बेमानी है। भले ही उसके शेयर की बुक वैल्यू बाजार भाव से ज्यादा 107.43 रुपए हो, लेकिन इसमें कतई नहीं फंसना चाहिए। वैसे भी, शायद इसमें आम निवेशक बचे ही कहां हैं? इक्विटी तो अब भी आईपीओ के समय जितनी 17.19 करोड़ रुपए ही है। बस, शेयर दस के बजाय पांच रुपए अंकित मूल्य का हो गया है। इक्विटी का 88.27 फीसदी तो ब्लैकस्टोन व मूल प्रवर्तकों के पास ही है।

आईपीओ के समय कंपनी की 18.18 फीसदी इक्विटी पब्लिक के पास थी। इनमें से समझदार लोग तो ओपन ऑफर के समय 275 रुपए की दर से अपने शेयर बेचकर निकल लिए होंगे। फिर भी पब्लिक के नाम पर अब भी कंपनी की 11.73 फीसदी इक्विटी है। इसमें से भी 6.63 फीसदी शेयर विनम्र यूनिवर्सल ट्रेडर्स प्रा. लिमिटेड के पास हैं। इसके बाद बाकी बचती है 5.10 फीसदी इक्विटी जो करीब दस हजार शेयरधारकों में बंटी है। वाजिब यही होगा कि सेबी को आदेश जारी गोकलदास एक्सपोर्ट्स को डीलिस्ट करवा देना चाहिए। वैसे भी लिस्टिंग बनी रहने के लिए पब्लिक के पास कंपनी की कम से कम 25 फीसदी इक्विटी होना तो अब जरूरी कर दिया गया है।

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