आज़ादी के समय से ही देश में यूनिवर्सल हेल्थकेयर का ख्वाब देखा गया। लेकिन 77 साल बाद भी हर तरफ स्वास्थ्य सेवाओं का अकाल है। अब दावा किया जा रहा है कि 2030 तक देश में सबको यूनिवर्सल हेल्थकेयर उपलब्ध कराने का लक्ष्य हासिल कर लिया जाएगा और 70 साल से ऊपर के वरिष्ठ नागरिकों को आयुष्मान योजना के तहत लाना इसी लक्ष्य की तरफ बढ़ा कदम है। लेकिन केवल स्वास्थ्य बीमा से क्या होगा? क्या इससे ज्यादा ज़रूरी नहीं कि देश भर में अच्छे अस्पतालों का जाल बिछा दिया जाए? यह काम मुनाफे के लिए काम कर रहा निजी क्षेत्र नहीं, बल्कि सरकार ही कर सकती है। मगर, सरकार तो निजी बीमा कंपनियों व निजी अस्पतालों को ही बढ़ाने में लगी है। हमारी प्राथमिकता ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि किसी भी नागरिक को हारी-बीमारी के निजात पाने में धन की पूर्वशर्त मिटा दी जाए। देश में ऐसा पब्लिक फंडेड हेल्थ सिस्टम बनाया जाए जिसमें सामाजिक स्थिति का कोई भेदभाव किए बिना सभी को समय से कारगर व मुफ्त इलाज मिले। जिन देशों में यूनिवर्सल हेल्थकेयर का सिस्टम है, वहां इलाज कराते वक्त कोई कुछ नहीं देता। सारी फंडिंग टैक्स से आती है। एक तरह से अमीर लोग गरीबों के स्वास्थ्य को सब्सिडाइज़ करते हैं और सबको चिकित्सा की समान सुविधा मिलती है। अपने यहां सब बीमा के भरोसे क्यों? अब बुधवार की बुद्धि…
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