यूं रंग क्यूं उतरा किरी इंडस्ट्रीज का

कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, यूं ही कोई बेवफा नहीं होता। यूं ही बिना किसी बात पर कोई शेयर खाक नहीं होता। ऐसा तभी होता है जब लोग उसे बेचने पर उतारू हो जाएं। और, कोई यूं ही किसी शेयर को बेचने पर उतारू नहीं होता। उसके पीछे कुछ न कुछ ज्ञात-अज्ञात कारण, कुछ न कुछ स्वार्थ जरूर होता है। खासकर ऐसा जब किसी स्मॉल कैप कंपनी के साथ हो तो इन स्वार्थों की शिनाख्त जरूरी हो जाती है। किरी इंडडस्ट्रीज का शेयर कल, 21 जुलाई 2011 को पिछले साल भर के न्यूनतम स्तर, 191.20 रुपए पर चला गया। बंद हुआ है बीएसई (कोड – 532967) में 192 रुपए और एनएसई (कोड – KIRIINDUS) में 192.60 रुपए पर।

कौन सोच सकता है कि जो शेयर करीब दस महीने पहले 6 सितंबर 2010 को 681 रुपए पर था, वह एक तिहाई से भी नीचे आ जाएगा? कोई कैसे सोच सकता है कि जो शेयर 46.6 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा था, वह साल भर के अंदर ही 8.3 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड होने लगेगा? वाकई किरी इंडस्ट्रीज के इस कदर गिरने का पेंच समझ से बाहर है। ज्यादा पुरानी नहीं, 1998 में बनी गुजरात की कंपनी है। कई तरह के डाइज और केमिकल बनाती है तो नाम भी पहले किरी डाइज एंड केमिकल्स था। अभी मार्च 2011 से नाम को बदलकर किरी इंडस्ट्रीज किया है। कंपनी को 2003 में सरकार से मान्यताप्राप्त ट्रेडिंग हाउस का दर्जा मिला। 2004 में इसकी उत्पादन इकाई सौ फीसदी निर्यातोन्मुख इकाई बन गई।

2008 में कंपनी ने चीन के प्रमुख समूह लांगशेंग के साथ मिलकर भारत में नया डाइस्टफ बनाने का संयंत्र लगाने की पहल की। 2009 में यह संयंत्र लगकर पूरा होने के बाद कंपनी भारत में डाइस्टफ की सबसे बड़ी निर्माता बन गई। अगले ही साल 2010 में उसने डाइज की दुनिया की मशहूर यूरोपीय कंपनी डाइस्टार का अधिग्रहण कर लिया। डाइस्टार को दिसंबर 2012 तक यूरोप के स्टॉक एक्सचेंजों में लिस्ट कराने का प्रस्ताव है।

कंपनी के प्रबंध निदेशक मनीष किरी की मानें तो इस साल अकेले डाइस्टार को 4.5 करोड़ यूरो (285 करोड़ रुपए) का कर-बाद लाभ हो सकता है। चालू वित्त वर्ष 2011-12 में किरी इंडस्ट्रीज की स्टैंड-एलोन आय 750 करोड़ रुपए रहने की उम्मीद है। इसमें डाइस्टार के लगभग 1600 करोड़ रुपए जुड़ेंगे। कुल मिलाकर कंसोलिडेटेड रूप से कंपनी की आय 2500 से 2600 करोड़ रुपए हो सकती है।

इन संभावनाओं के बावजूद शेयर क्यों गिर रहा है? बीते वित्त वर्ष में कंपनी का कामकाज ठीक ही रहा है। उसने 2010-11 में 573.34 करोड़ रुपए की आय पर 45.70 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया है। साल भर पहले की तुलना में उसकी आय 65.76 फीसदी और शुद्ध लाभ 88.06 फीसदी बढ़ा है। साल में हुए 12.84 करोड़ रुपए के असामान्य नुकसान को किनारे कर दें तो उसका सालाना ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 27.42 रुपए निकलता है। लेकिन कुछ समायोजन के बाद हम उसका ईपीएस 23.09 रुपए ही लेकर चल रहे हैं। इस तरह उसका शेयर 192 रुपए के मौजूदा भाव पर 8.315 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। उसकी वर्तमान बुक वैल्यू ही इससे कहीं ज्यादा 218.34 रुपए है।

जाहिरा तौर पर इस स्टॉक के बढ़ने की भरपूर संभावना है। नोट करने की बात यह कि डाइज व केमिकल्स ऐसे उद्योग हैं जिनसे विकसित देश अपने अवाम की पर्यावरण व प्रदूषण संबंधी चिंताओं के कारण तौबा कर रहे हैं। लेकिन इन रसायनों की जरूरत को तो खत्म नहीं किया जा सकता है। इसलिए ये जरूरतें भारत जैसे देशों की किरी इंडस्ट्रीज जैसी कंपनियों से ही पूरी की जाएंगी तो कंपनी के भविष्य को बाहर से कोई आंच नहीं आने वाली है। हां, अंदर की बात अलग है।

यह भी बता दें कि कंपनी ने मार्च 2008 में आईपीओ के जरिए अपने 37.50 लाख शेयर 150 रुपए के मूल्य पर जारी किए थे। इसके बाद उसने अक्टूबर 2010 में क्यूआईपी (क्लालिफायड इंस्टीट्यूशनल प्लेसमेंट) में बड़े निवेशकों को अपने 40 लाख शेयर 597 रुपए के मूल्य पर बेचे थे। कंपनी की मौजूदा इक्विटी 19 करोड़ रुपए है जो दस रुपए अंकित मूल्य के शेयरों में विभाजित है। इसका 41.81 फीसदी पब्लिक और बाकी 58.19 फीसदी प्रवर्तकों के पास है। पब्लिक के हिस्से में से 11.65 फीसदी एफआईआई और 12.28 फीसदी डीआईआई का पास है। प्रवर्तकों ने मार्च 2011 तक अपनी इक्विटी का 48.68 फीसदी (कंपनी की कुल इक्विटी का 28.32 फीसदी) गिरवी रखा हुआ था। ताजा स्थिति का पता नहीं है। कंपनी के कुल शेयरधारकों की संख्या 6645 है। इनमें से दस बड़े शेयरधारकों के पास उसकी 21.08 फीसदी इक्विटी है। कंपनी 2008 में लिस्ट होने के बाद से हर साल लाभांश देती रही है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *