युद्ध अच्छा नहीं। अच्छा है युद्ध विराम हो गया। आरपीजी ग्रुप के चेयरमैन और खुद करीब 370 करोड़ डॉलर नेटवर्थ वाले हर्ष गोयनका का कहना है कि युद्ध अर्थव्यवस्था को कमज़ोर करता है, भले ही वो जीतनेवाले देश की हो। उन्होंने कहा था कि भारत-पाक तनाव से रुपए के डगमगाने, विदेशी निवेशकों के भागने, कच्चे तेल के उछलने का खतरा है। इससे रक्षा खर्च बढेगा, इंफ्रास्ट्रक्चर पीछे चला जाएगा, शेयर बाज़ार डुबकी लगा सकता है। युद्ध के उन्माद में समझदारी की ऐसी आवाज़ कम ही सुनने को मिलती है। युद्ध की धुंध का फायदा उठाकर सरकार ने चुपचाप गेहूं, मक्का, चावल व डेयरी को छोड़ अमेरिका से आयात होनेवाले करीब-करीब सभी उत्पादों पर कस्टम ड्यूटी ज़ीरो करने की पेशकश कर दी। यह कैसा राष्ट्रवाद है? एक तरफ युद्ध का हल्ला, दूसरी तरफ देश-विरोधी फैसला। आम धारणा है कि युद्ध के दौरान डिफेंस से जुड़ी कंपनियों के शेयर बढ़ जाने चाहिए। इस उम्मीद में ऑपरेशन सिंदूर के बाद ज्यादातर निजी व सार्वजनिक क्षेत्र की डिफेंस कंपनियों के शेयरों में वोल्यूम तो बढ़ गया, मगर भावों में कोई खास रफ्तार नहीं आई। अब तथास्तु में आज की कंपनी…
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