बस एक छाप, अनुभूति या आत्मा भर बची रह गई। क्या करूं उसका? महसूस कर सकता हूं पर देख नहीं सकता, छू नहीं सकता। शब्दों के शरीर में ढाल नहीं सका तो सब कुछ रहते हुए भी कुछ नहीं रहा।
2011-03-24
बस एक छाप, अनुभूति या आत्मा भर बची रह गई। क्या करूं उसका? महसूस कर सकता हूं पर देख नहीं सकता, छू नहीं सकता। शब्दों के शरीर में ढाल नहीं सका तो सब कुछ रहते हुए भी कुछ नहीं रहा।
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