सरकारी दखल और खर्च अंततः भ्रष्टाचार को ही बढ़ाता है। इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम के खुलासे से यह बात एकदम साफ हो गई। लेकिन मोदी सरकार जीडीपी का जो आंकड़ा पेश करती है, उसमें इससे भी बड़ा लोचा है जिससे देश के 99.99% लोग अनजान हैं। जीडीपी के दो आंकड़े होते हैं। एक नॉमिनल और दूसरा रीयल। नॉमिनल की गणना मौजूदा मूल्यों पर की जाती है जो ऊपर-ऊपर दिखता है जिसमें झाग ही झाग होते हैं। रीयल की गणना 2011-12 के स्थाई मूल्यों पर की जाती है और वो झाग के नीचे की असली विकास दर होती है। मई 2014 में सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने जीडीपी की गणना का पूरा तरीका जनवरी 2015 से बदल दिया। इससे पहले औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) जैसे वोल्यूम या मात्रा पर आधारित सूचकांकों से रीयल जीडीपी की गणना सीधे की जाती थी और उसमें फिर डिफ्लेटर जोड़कर नॉमिनल जीडीपी निकाला जाता था। सारा काम असली जीडीपी का है तो डिफ्लेटर और नॉमिनल जीडीपी तब खास किसी काम के नहीं थे। लेकिन मोदी सरकार मात्रा नहीं, मूल्यों के आधार पहले नॉमिनल जीडीपी निकालती है और फिर डिफ्लेटर लगाकर असली या रीयल जीडीपी बताती है। नतीजा जीडीपी पर झाग ही झाग छा गया और असली जीडीपी कहीं नीचे दब गया। कोढ़ में खाज यह कि डिफ्लेटर भी वैश्विक पैमाने का नहीं, बल्कि इनका अपना ही गढ़ा छद्म है। अब बुधवार की बुद्धि…
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