ट्रेंड है फ्रेंड, फिर भी फायदा दूर क्यों!

हर अनुभवी ट्रेडर ट्रेंड को फ्रेंड मानता है। लेकिन इस पारंपरिक और प्रचलित सोच के साथ दो समस्याएं हैं। पहली यह कि ट्रेंड जारी रहा तो यकीनन फायदा होता है। पर इसकी मात्रा इतनी सीमित हो सकती है कि ब्रोकरेज़ व दूसरे खर्च काटने के बाद हो सकता है कि ट्रेंड पर किया गया ट्रेड फालतू की मशक्कत बन जाए। दूसरी समस्या यह है कि मान लीजिए कि आपने सौदे को जैसे ही हाथ लगाया, वैसे ही शेयर की चाल पलट गई तो! ऐसी हालत में स्टॉप लॉस ट्रिगर होने की नौबत आ जाती है।

ऐसा न हो, इसके लिए प्रोफेशनल ट्रेडर ट्रेंड से ज्यादा मोड़ को पकड़ने का तरीका अपनाते हैं। वे उस ठीक बिंदु की शिनाख्त करते हैं जहां से कोई शेयर बढ़ने या गिरने की दिशा पकड़ता है। हालांकि ट्रेडिंग की तमाम किताबें कहती हैं कि इस तरह टॉप और बॉटम पकड़ने में बहुत ज्यादा जोखिम है और ज़रा-सी चूक से आपको भयंकर घाटा हो सकता है। इसलिए आम ट्रेडर को इस चक्कर में न पड़कर ट्रेंड की दिशा में ट्रेडिंग करनी चाहिए।

सवाल उठता है कि मोड़ या ट्रेंड को पकड़कर चलने में रिस्क और रिवॉर्ड का क्या संतुलन है? याद रखॆ कि अच्छा ट्रेडर हमेशा कम से कम रिस्क में अधिक से अधिक मुनाफा कमाने की जुगत भिड़ाने में लगा रहता है। वह कभी अनावश्यक रिस्क उठाने का दुस्साहस नहीं करता। इसीलिए वो मोड़ को पकड़ने की नीति अपनाता है।

मोड़ को पकड़ने के लिए टेक्निकल एनालिसिस में तमाम ऑसिलेटर मौजूद हैं, जिसमें आरएसआई या रिलेटिव स्ट्रेन्थ इंडेक्स काफी प्रचलित है। इससे पता चलता है कि कोई शेयर ओवरबॉट अवस्था में है या ओवरसोल्ड अवस्था में। 100 के स्केल पर आरएसई अगर 70 या इससे ऊपर है तो स्टॉक या शेयर को ओवरबॉट माना जाता है जिसके बाद उसका भाव नीचे आना चाहिए। वहीं आरएसआई 30 या इससे नीचे होने पर स्टॉक को ओवरसोल्ड माना जाता है और उसके बाद उसका भाव ऊपर जाना चाहिए।

इसके पीछे यह धारणा है कि ओवरबॉट स्टॉक में बिकवाली आएगी, जिससे उसका भाव गिरेगा। वहीं ओवरसोल्ड स्टॉक में अब नई खरीद शुरू होगी जिससे वो बढ़ेगा। एक तो आरएसआई संकेतक के साथ समस्या यह है कि यह उसी समय कारगर होता है जब किसी शेयर का भाव अपट्रेंड या डाउनट्रेंड न होकर साइडवेज़ चलता है यानी वो एक निश्चित दायरे में ऊपर-नीचे हो रहा होता है। दूसरे, आम निवेशकों की मानसिकता यह होती है कि वे बढ़ते स्टॉक को खरीदते हैं और गिरते स्टॉक को बेचते हैं। आपने गौर किया होगा कि हमारी घरेलू निवेशक संस्थाएं (डीआईआई), जिनमें म्यूचुअल फंड प्रमुख हैं, शायद आम निवेशकों की तरफ से आए इसी तरह के रिडेम्पशन के दबाव में एफआईआई से उल्टी दिशा पकड़ती हैं।

इसलिए खरीद या बिक्री के दौर का शुरू होना हमारे यहां खासतौर पर एफआईआई की पहल से तय होता है। वाजिब-सा सवाल यह उठता है कि एफआईआई के फैसले बेहद गोपनीय होते हैं तो उनका पता पहले से कैसे लगाया जा सकता है? कुछ ब्रोकर या ऑपरेटर इसी रहस्य का फायदा उठाकर लोगों को झांसा देते हैं कि उनके पास एफआईआई या राकेश झुनझुनवाला जैसे बड़े निवेशकों की खरीद या बिक्री की खबर दो-चार दिन पहले ही आ जाती है। ऐसे लोगों की बात पर कतई यकीन न करें क्योंकि अगर ऐसा हो भी तो वे पहले खुद धंधा करके नोट बना लेंगे। भला सौदे के पहले वो आपको क्यों बताने लगे!!

उनके चक्कर में न पड़कर हम खुद एफआईआई या बड़े निवेशकों की खरीद/बिक्री का पता पहले से लगा सकते हैं। भाव वहीं से मुड़ते हैं जहां मांग और सप्लाई में सबसे ज्यादा असंतुलन होता है। पहला संकेत यह होता है कि ठीक मोड़ से पहले स्टॉक में वोल्यूम काफी दबा-दबा चलता है। दूसरे चार्ट पर ठीक पिछले मोड़ पर जाकर हम देख सकते हैं कि भावों के किस दायरे में तेज़ उठान या गिरावट, दूसरे शब्दों में बड़ी खरीद या बिक्री आई है। इसमें तीन कैंडल्स का निश्चित पैटर्न तलाशा जाता है जिसके बारे में आपको कभी विस्तार से बताएंगे। बड़ी खरीद और बिक्री जिस दायरे में आती है, उसे डिमांड ज़ोन और सप्लाई ज़ोन कहा जाता है। यह सपोर्ट और रेजिस्टेंट से एकदम भिन्न धारणा है।

निश्चित रूप से ट्रेंड के साथ ट्रेड करने में फायदा होता है। लेकिन असली चुनौती यह है कि हम ट्रेंड शुरू होते ही उसे पकड़ लें क्योंकि वही बिंदु हमें अधिकतम फायदा करा सकता है। जब ट्रेंड शुरू हो गया तो बहुत मुमकिन है कि सारा माल पहले ही साफ हो चुका हो। प्रायः तब तक एफआईआई और बड़े निवेशक अपना दांव खेल चुके होते हैं। तब भेड़चाल शुरू होने जा रही होती है। और, भेड़चाल हमेशा घाटा कराती है। उस्ताद लोग इसी भेड़चाल का फायदा उठाकर अपना एकाउंट बढ़ाते जाते हैं।

बात साफ है कि आप सड़क के बीचोबीच चलोगे तो एक्सीडेंट की आशंका बहुत ज्यादा है, जबकि किनारे-किनारे चलोगे तो सुरक्षित रहोगे। इसी नीति का पालन कर प्रोफेनशल ट्रेडर किनारा पकड़कर वार करते हैं और न्यूनतम रिस्क में अधिकतम मुनाफा कमाते हैं। आम ट्रेडरों और उनमें फर्क बस इतना होता है कि जहां आम ट्रेडर ट्रेंड को बीच धारा में पकड़ते हैं, वहीं प्रोफेशनल ट्रेडर ठीक शुरू होते ही ट्रेंड को किनारे पर, मोड़ पर पकड़ लेते हैं। उम्मीद है कि मेरी बातों पर मनन करेंगे और बराबर अपने अनुभव और दूसरों के अनुभव यानी किताबों से सीखते रहेंगे। यहां अलेक्ज़ैंडर एल्डर की एक और किताब आपके लिए पेश कर रहा हूं जिसकी पीडीएफ फाइल आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके डाउनलोड कर सकते हैं…

Alexander Elder – Sell & Sell Short

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