ज़िदगी तो हम अकेले ही जीते हैं। परिवार इसे आसान व रागात्मक बना देता है। समाज इसे लय व ताल से भर देता है। देश इसे सुरक्षित व उदात्त बना देता है। आखिर कौन हैं वे जो देश को ऐसा बनने नहीं दे रहे?
2011-08-14
ज़िदगी तो हम अकेले ही जीते हैं। परिवार इसे आसान व रागात्मक बना देता है। समाज इसे लय व ताल से भर देता है। देश इसे सुरक्षित व उदात्त बना देता है। आखिर कौन हैं वे जो देश को ऐसा बनने नहीं दे रहे?
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