जब औरों की आशाएं आपसे जुड़ जाती हैं तो जीत या हार सिर्फ आपकी नहीं होती। वह अपने-पराए उन तमाम सामान्य जनों की होती है जो खुद लड़ नहीं सकते लेकिन आपके साथ मर जरूर सकते हैं।और भीऔर भी

जीत का मतलब यही क्यों होता है कि हम कितनों को पीछे छोड़ आगे निकल गए? जीत का मतलब यह क्यों नहीं होता कि कितने लोगों के साथ हमारा दिल धड़कता है, कितनों का दुख हमें अपना लगता है?और भीऔर भी

सत्य की जीत अपने आप नहीं होती। इसके लिए थोड़े झूठ, थोड़े छल का सहारा लेना पड़ता है। इसके लिए ‘नरो व कुंजरो व’ पर शंख बजाना, रथ से नीचे उतरे कर्ण से छल करना और विभीषण से भेद लेना जरूरी होता है।और भीऔर भी