अर्थनीति जब राजनीति की सेवा का साधन बन जाए तो आर्थिक उन्नति व विकास के सारे वादे खोखले नारे बन जाते हैं। देश के जो राज्य आज केंद्र की राजनीति में हाशिए पर हैं, वे प्रति व्यक्ति आय के मामले में सबसे ऊपर है। दरअसल, उन्होंने शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य व जनसंख्या नियंत्रण में शानदार काम किया है। इस समय जहां देश की प्रति व्यक्ति आय 2698 डॉलर है, वहीं तेलंगाना की प्रति व्यक्ति आय 4306 डॉलर,औरऔर भी

नीति आयोग के लक्ष्य के मुताबिक 2047 में देश को सतही स्तर पर मुद्रास्फीति के झाग समेत 18,000 डॉलर प्रति व्यक्ति आय का लक्ष्य हासिल करना है तो इसे अगले 22 सालों तक 9.01% की सालाना चक्रवृद्धि दर (सीएजीआर) से बढ़ना होगा और मुद्रास्फीति के झाग के बिना यह लक्ष्य हासिल करना है तो इस दौरान 11.85% की सीएजीआर से बढ़ना होगा। औसतन 6-6.5% की वृद्धि दर वाला देश कैसे यह असंभव चमत्कार कर दिखाएगा, यह मानवऔरऔर भी

भारत को विकसित देश बनाना अब कोई कार्यक्रम नहीं, बल्कि मार्केटिंग का पैंतरा बनकर रह गया है। सरकार या सरकारी संस्थानों को जो कुछ बेचना है, उसे विकसित भारत के रैपर में लपेट देते हैं। यहां तक कि भारतीय स्टेट बैंक ने कुछ हफ्ते पहले अपने म्यूचुअल फंड के लिए ₹250 प्रति माह की एसआईपी ‘जननिवेश – जन जन का निवेश’ स्कीम लॉन्च की तो उसकी भी टैगलाइन बना दी कि विकसित भारत की यात्रा का हिस्साऔरऔर भी

सबसे बड़ी चुनौती है कि भारत के मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र को जगाने की। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2000 में दुनिया की औद्योगिक मैन्यूफैक्चरिंग में अमेरिका, जापान व जर्मनी की संयुक्त हिस्सेदारी 44% थी, जबकि चीन की 6% और भारत की 2% थी। उसका अनुमान है कि साल 2030 में दुनिया की औद्योगिक मैन्यूफैक्चरिंग में अकेले चीन की हिस्सेदारी 45% तक पहुंच जाएगी, जबकि भारत 5% के पार नहीं जा जाएगा। फिर भी प्रधानमंत्री नरेंद्रऔरऔर भी

विदेशी निवेशकों के भारत छोड़कर चीन की तरफ भागने की तीन खास वजहें बताई जा रही हैं। एक, अमेरिका जहां चीन से मोलतोल करने की मुद्रा में है, वहीं वो भारत पर एकतरफा दबाव बनाकर अपनी शर्तें मनवा रहा है। उसे पता है कि भारत कहीं से मोलतोल करने की स्थिति में नहीं है। दूसरे भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले लगातार कमज़ोर होता जा रहा है। विदेशी निवेशकों को लगता है कि भारतीय शेयर बाज़ार से मुनाफाऔरऔर भी

भारत का मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र नहीं बढ़ेगा तो यहां के उद्योग-धंधे कैसे बढ़ेगे? उद्योग-धंधे नहीं बढ़ेंगे तो कॉरपोरेट क्षेत्र कैसे बढ़ेगा? कॉरपोरेट क्षेत्र नहीं बढ़ेगा तो शेयर बाज़ार कैसे बढ़ सकता है? भारत की विकासगाथा की इस ज़मीनी हकीकत ने विदेशी निवेशकों को हताश कर दिया है। केवल विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) ही नहीं, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) करनेवाले भी अब भारत से बिदक कर भागने लगे हैं। उन्हें यकीन है कि जो सरकार भ्रष्टाचार के ज़रिए विश्वऔरऔर भी

बीएसई का सेंसेक्स और एनएसई निफ्टी-50 सूचकांक 27 सितंबर 2024 के ऐतिहासिक शिखर से अब तक 15% से ज्यादा गिर चुके हैं। शेयर बाज़ार के इस तरह धड़ाम होने की एकमात्र वजह है कि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) का पलायन। वे हमारे शेयर बाज़ार के कैश सेगमेंट ने 27 सितंबर 2024 से कल तक हमारे शेयर बाज़ार के कैश सेगमेंट से ₹2.36 लाख करोड़ निकाल चुके हैं। आखिर दुनिया की सबसे तेज़ गति से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्थाऔरऔर भी

सरकार के राष्ट्रीय सांख्यिकी संगठन (एनएसओ) ने चालू वित्त वर्ष 2024-25 में मौजूदा मूल्यों पर जीडीपी का दूसरा अग्रिम अनुमान बढ़ाकर ₹331.03 लाख करोड़ कर दिया है। इसका पहला अग्रिम अनुमान ₹324.11 लाख करोड़ का था। इस समय डॉलर 87.36 रुपए का चल रहा है तो मुद्रास्फीति को जोड़कर हमारा जीडीपी मार्च 2025 तक 3.79 ट्रिलियन डॉलर का होगा। इस बीच पिछले तीन साल से प्रधानमंत्री देश की अर्थव्यवस्था को पांच ट्रिलियन डॉलर और उत्तर प्रदेश वऔरऔर भी

उत्तर प्रदेश प्रति व्यक्ति आय में झारखंड और दुनिया के सब-सहारा अफ्रीकी देशों से भी गरीब है। वहां लोगों की कमाई से ₹3,00,000 करोड़ खर्च करवा देने से अर्थव्यवस्था में मूल्य का सृजन होगा या नाश होगा? योगी सरकार को तो ₹7500 करोड़ के खर्च पर ₹9000 करोड़ का टैक्स वगैरह मिल गया। स्थानीय लोगों की कमाई हो गई। रेलवे से लेकर एयरलाइंस ने जमकर कमाया। लेकिन आस्था में डूबे श्रद्धालुओं को क्या मिला? उन्हें कोई शक्तिऔरऔर भी

आज के दौर में दुनिया में शायद ही कहीं धर्म के आधार पर राजनीति होती है। लेकिन भारत में धर्म के आधार पर राजनीति ही नहीं हो रही, बल्कि धंधा भी हो रहा है। वो भी उस धर्म के नाम पर जो इतिहास में कहीं दर्ज ही नहीं है। उसे कभी हिंदू तो कभी सनातन कहने लगते हैं। भारत में प्रचलित जो धर्म इतना व्यापक है कि उसकी कोई एक किताब नहीं, कोई एक आराध्य देव नहीं,औरऔर भी