अमेरिका में मचा बवाल, डाउ जोंस का 512 अंक गिरना, एशियाई बाजारों को लगी चपत और यूरोप की अस्पष्टता अपने साथ भारतीय बाजार को भी बहा ले गई। वैसे, मंदडियों का समुदाय आज सबसे ज्यादा मौज में रहा होगा, बशर्ते उन्होंने पर्याप्त शॉर्ट सौदे कर रखे होंगे। लेकिन यह काफी मुश्किल लगता है क्योंकि बाजार में शॉर्ट सेलिंग के महारथी व जिगर वाले ट्रेडर मुठ्ठी भर ही हैं। उनके कौशल को मैं सलाम करता हूं क्योंकि मैंऔरऔर भी

कितने लोग जानते हैं कि टीटीके प्रेस्टिज को हमने पांच साल पहले 90 रुपए पर खरीदने की सलाह दी थी। हफ्ते भर पहले यह 3200 रुपए पर था। इस स्टॉक को फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस (एफ एंड ओ) में रखे जाने की कोई जरूरत नहीं थी। फिर भी इसे एफ एंड ओ में डाल दिया गया और मंदड़िए अब इसे अपना आसान शिकार बनाएंगे। जिनके पास भी यह स्टॉक बड़ी मात्रा में हैं, उन्होंने डिलीवरी के एवज मेंऔरऔर भी

अमेरिका में ऋण-सीमा बढ़ाने का मुद्दा अब इतिहास बन चुका है। मूडीज ने बिना रेटिंग बदले अमेरिका को डाउनग्रेड कर दिया है। नतीजतन अमेरिकी बाजार कल धड़ाम हो गए। यह सब तो निपट गया। अब आगे क्या? अब आप अमेरिकी बाजार को लेकर क्या बहस करेंगे? क्या आप अब भी भारत में बेचते रहेंगे क्योंकि कौन जानता है कि अमेरिका का अगला डाउनग्रेड तीन महीने बाद ही हो जाए? ध्यान रखें कि अमेरिकी बाजार में भरपूर लोचऔरऔर भी

बाजार में पहले से छाए पस्ती के आलम को और हवा तब मिल गई, जब अमेरिकी ऋण संकट के समाधान के बावजूद एशिया के बाजार गिर गए। मंदड़ियों का खेमा मान बैठा है कि अमेरिका में हुआ राजनीतिक समझौता तात्कालिक समाधान है। इसलिए इस पर चहकने की कोई जरूरत नहीं है। बाजार फिर से 5500 के नीचे चला गया तो उन्होंने फिर से बिक्री का बटन दबा दिया है। फिर वही बात उठा ली है कि अबऔरऔर भी

तीन साल पुराने लेहमान ब्रदर्स के प्रेत ने हमारे निवेशकों व ट्रेडरों के मन को अभी तक अवांछित नकारात्मकता से भर रखा है। अमेरिका के ऋण संकट को यहां इतनी संजीदगी से देखा जा रहा था जैसे भारत व एशिया के निवेशकों ने ही अमेरिका को सारा उधार दे रखा हो और कोई भी संभावित डिफॉल्ट उनका धन स्वाहा कर देगा। यह निराशावाद की इंतिहा है और मेरी राय में अगर कोई निवेशक जोखिम नहीं उठा सकताऔरऔर भी

निफ्टी और सेंसेक्स दोनों लगभग सपाट। लेकिन बाजार में छाई निराशा का कोई अंत नहीं है। ट्रेडर हलकान हैं। निवेशक अपनी गाढ़ी कमाई को लेकर परेशान हैं। वे तमाम ऐसी कंपनियों में कसकर फंस चुके हैं, जिनके शेयर अच्छे फंडामेंटल्स के बावजूद उनकी खरीद के भाव से नीचे ही नीचे चल रहे हैं। दरअसल, बाजार अपना मूल चरित्र खो चुका है और उस पर सट्टेबाजी और जोड़तोड़ हावी हो गई है। हालत यह है कि आज बोगसऔरऔर भी

अमेरिका के ऋण-संकट ने पूरी दुनिया के बाजारों की हालत पटरा कर दी है तो भारतीय बाजार कैसे सलामत बच सकता था। निफ्टी एक फीसदी से ज्यादा गिरकर 5500 के नीचे पहुंच गया। फिर भी मुझे लगता है कि अपने यहां असली तकलीफ रोल्स की है। चूंकि यह फिजिकल सेटलमेंट है नहीं, तो ट्रेडरों के पास कैश का अंतर भरने के अलावा कोई चारा नहीं है। यह हमारे बाजार में आई तीखी गिरावट का मूल कारण हैऔरऔर भी

बाजार में भारी-भरकम शॉर्ट सौदों की भरमार है। लेकिन बाजार का मूल रुझान अब भी नहीं बदला और वह अब भी तेजड़ियों के हाथ में है। कल की तीखी गिरावट यकीनन अचानक सन्न रह जाने की प्रतिक्रिया थी। ठीक एक्सपायरी के पहले ऐसे झटके की उम्मीद कहीं से भी नहीं थी। वैसे, बाजार को जैसे करेक्शन की दरकार थी, यह उस कड़ी का आखिरी करेक्शन था। अब सितंबर में ब्याज दर में किसी वृद्धि की उम्मीद नहींऔरऔर भी

बाजार को मनचाहे अंदाज में नचानेवालों के लिए आज से बेहतर कोई दूसरा दिन हो नहीं सकता था। ब्याज दर में ज्यादा से ज्यादा 0.25 फीसदी वृद्धि की अपेक्षा थी। लेकिन असल में यह निकली 0.50 फीसदी। इसे रोलओवर के पहले बाजार को तगड़ा झटका देने के इस्तेमाल किया गया। हालांकि बाजार ने पिछले दो हफ्तों में हासिल सारी बढ़त एक झटके में खो दी है। लेकिन निश्चित तौर पर बाजार की अंतर्धारा नहीं बदली है। केवलऔरऔर भी

असली मायने-मतलब भरोसे का होता है। टेक्निकल एनालिस्ट बाधाएं खड़ी करते हैं क्योंकि इनका काम ही यही है। इंसानों का काम है उनके प्रतिरोध व बाधाओं को तोड़ देना। निफ्टी में 5660 प्रतिरोध का बहुत ही मजबूत स्तर था और किसी ने भी नहीं सोचा था कि यह स्तर टूट जाएगा और वो भी रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति की त्रैमासिक समीक्षा से ठीक पहले, खासकर तब, जब बाजार कमजोरी के साथ गिरकर खुला था। लेकिन दोऔरऔर भी