बेसिरपैर की बातों को क्या देना भाव!

बाजार में पहले से छाए पस्ती के आलम को और हवा तब मिल गई, जब अमेरिकी ऋण संकट के समाधान के बावजूद एशिया के बाजार गिर गए। मंदड़ियों का खेमा मान बैठा है कि अमेरिका में हुआ राजनीतिक समझौता तात्कालिक समाधान है। इसलिए इस पर चहकने की कोई जरूरत नहीं है। बाजार फिर से 5500 के नीचे चला गया तो उन्होंने फिर से बिक्री का बटन दबा दिया है। फिर वही बात उठा ली है कि अब तो निफ्टी 4850 पर जाकर ही थमेगा।

फिलहाल सेंसेक्स 1.12 फीसदी गिरकर 18,109.89 और निफ्टी 1.09 फीसदी गिरकर 5456.55 पर बंद हुआ है। खैर, निफ्टी में 5500 के स्तर को लेकर मैं हमेशा सुकून महूसस करता हूं क्योंकि बाजार जब भी 5500 से नीचे जाता है, वह बहुत तेजी से पलटकर वापस इस स्तर पर आ जाता है। आज ऋण सीमा बढ़ाने के करार को सीनेट की मंजूरी मिलने के बाद अमेरिकी बाजार बढ़ेगा। हालांकि यह बात ध्यान में रखी जानी चाहिए कि यह कोई नियमित मसला नहीं है और पिछले 70 सालों में बाजार की लय-ताल पर इससे कभी कोई फर्क नहीं पड़ा है। इसलिए इसमें बहुत सारे अर्थ-निहितार्थ नहीं निकाले जाने चाहिए।

इसके विपरीत, धीमे आर्थिक विकास और कंपनियों के कमजोर लाभार्जन के बीच प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने दोहराया है कि वे रिश्वतखोरी व भ्रष्टाचार के मसले से निपटने को तैयार हैं। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने भी आधिकारिक तौर पर कह दिया है कि संसद के मानसून सत्र में आर्थिक सुधारों से जुड़े और कानूनों को लाया और पास कराया जाएगा।

उधर रिजर्व बैंक ने संकेत दिया है कि वह ऋण के बजाय इक्विटी के प्रवाह को ज्यादा पसंद करेगा। इसका मतलब ही हुआ कि बाजार के माफिक पड़नेवाले कुछ नए सुधार किए जाने हैं। ब्याज दरों का चक्र अपनी चोटी पर पहुंच चुका है क्योंकि रीयल्टी के साथ-साथ कारों वगैरह की बिक्री पर भी इसका काफी बुरा असर पड़ रहा है। बैंकों ने रिजर्व बैंक पर काफी दबाव बनाया है कि वह अब ब्याज दरों में और वृद्धि न करे।

वैसे, जरा-सा गहराई से देखें तो साफ हो जाएगा कि मुद्रास्फीति का असली कारण खाद्य आपूर्ति का कुप्रबंधन, एनसीडीईएक्स में बनी इनवेंटरी के जरिए हो रही जमाखोरी और आवश्यक वस्तुओं के भंडारण व आवाजाही के लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर का अभाव है। इन समस्याओं को सुलझाना कोई मुश्किल काम नहीं है और ऐसा होने पर हम देखेंगे कि आपूर्ति के दुरुस्त होने से मुद्रास्फीति काबू में आ जाएगी। साथ ही सरकार की तरफ से बड़ी पहल की जरूरत है कि वह एफसीआई व अन्य संबंधित सरकारी एजेंसियों को आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई को संभालने की हिदायत दे। अभी तो भंडारण सुविधाओं के अभाव में खुलेआम लाखों टन अनाज बरबाद हो रहा है।

इस बीच बहुत सारे स्टॉक्स बेसिरपैर की चर्चाओं के चलते बढ़े चले जा रहे हैं। न तो मैं इनको कोई भाव देना चाहता हूं और न ही मैं इन पर कोई टिप्पणी करूंगा। मेरा तो निवेशकों से बस यही कहना है कि आप उन्हीं स्टॉक्स को खरीदें जो अभी 15 से कम के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहे हैं क्योंकि मैं चाहता हूं कि आप पूरी तरह सुरक्षित रहें। 25 के पी/ई से ऊपर ट्रेड हो रहा कोई भी स्टॉक आपके स्वास्थ्य से लिए खतरनाक है क्योंकि अगर किसी वजह से डाउनग्रेड की नौबत आ गई तो ये स्टॉक 25 फीसदी तक गिर सकते हैं। इसका ताजा नमूना ऑर्किड केमिकल्स है जो पिछले एक महीने में ही 275 रुपए से करीब 27 फीसदी गिरकर 201 रुपए तक आ चुका है।

वे बहुत पहुंचे हुए लोग होते हैं जिनका मौन ही सब कुछ कह देता है और जिन्हें सच बयां करने के लिए शब्दों की कोई जरूरत नहीं पड़ती।

(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होंगे। यह मूलत: सीएनआई रिसर्च का फीस-वाला कॉलम है, जिसे हम यहां मुफ्त में पेश कर रहे हैं)

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