जो ठहरा वो मरा। जो चलता रहा, वही ज़िंदा है। सदियों पहले बुद्ध ने जीवन में निरतंर परिवर्तन की कुछ ऐसी ही बात कही थी। जो व्यक्ति या संस्थान समय के हिसाब से बदल नहीं पाता, वो खत्म हो जाता है। लेकिन ‘अर्थकाम’ ने तो न मिटने की कसम खा रखी है तो बनने से लेकर अब तक कई तरह के उतार-चढ़ाव देखें, झंझावात देखे। मगर, हर बार वित्तीय साक्षरता और आर्थिक सबलता के अधूरे मिशन कोऔरऔर भी

आप बाज़ार का जबरदस्त विश्लेषण कर लें, शानदार स्टॉक्स चुन लें, भयंकर रिसर्च कर लें, तब भी ट्रेडिंग की जंग में जीत की कोई गारंटी नहीं। लगातार पचास मुनाफे के सौदे, पर एक की सुनामी सब बहा ले जाएगी। अच्छा ट्रेडिंग सिस्टम बड़े काम का है। पर बाज़ार अक्सर सिस्टम से बाहर छटक जाता है। स्टॉप लॉस बांधने में टेक्निकल एनालिसिस से मदद मिलेगी। इससे घाटा कम होगा, पर मिटेगा नहीं। घाटा मिटाने का एकमेव सूत्र हैऔरऔर भी

अनाड़ी ट्रेडर जहां-तहां मुंह मारते हैं। वहीं प्रोफेशनल ट्रेडर एक ही बाज़ार में महीनों डटे रहते हैं। प्रोफेशनल एक खास तरीके पर महारत हासिल करते हैं। बहुत-से लोग उनकी ट्रेडिंग का पैटर्न देखकर भी सीखते हैं। लेकिन हर हाल में आपको अपना सौदा तथ्यों और संभावनाओं पर टिकाना होता है, न कि ‘गट-फीलिंग’ या उम्मीद पर। सही उत्तर अपनी रिसर्च से तलाशे जाते हैं। तभी आप में ट्रेडिंग का आत्मविश्वास बनेगा। इसी कड़ी में बढ़ते हैं आगे…औरऔर भी

कहावत है कि चिंता से चतुराई घट जाती है। लेकिन ब्रिटेन के सनी डाउनस्टेट मेडिकल सेंटर के एक ताजा शोध से पता चला है कि बुद्धिमत्ता और चिंता में बड़ा करीबी रिश्ता है। उच्च बुद्धिमत्ता और चिंता से मस्तिष्क में कोलीन नामक रसायन का क्षरण समान गति से होता है। इसलिए यह कहना गलत है कि चिंता नकारात्मक और बुद्धिमानी सकारात्मक है। दोनों असल में सिक्के का एक ही पहलू हैं। शोध से यह भी पता चलाऔरऔर भी

खेमे पकड़ लेना सबसे आसान है। लेकिन खेमों से बाहर निकलकर सत्य का अनुसंधान बहुत कठिन है। खेमों में आस्था चलती है। आप बहुत कुछ मानकर चलते हैं। लेकिन यहां सब कुछ कसौटी पर कसा जाता है।और भीऔर भी

शुक्रवार को विदेशी निवेश बैंक मैक्वारी ने अपनी रिसर्च रिपोर्ट में आगाह किया था कि भारत को कच्चे तेल का झटका लग सकता है क्योंकि रुपए में इसकी कीमत अब तक की चोटी पर पहुंच चुकी हैं। तेल की ऊंची कीमतें मुद्रास्फीति को धक्का दे सकती हैं और ब्याज दरों को घटाए जाने की संभावना खत्म हो सकती है। मैक्वारी के बाद अब देश की दो प्रमुख रेटिंग एजेंसियों क्रिसिल और केयर रेटिंग्स ने कच्चे तेल केऔरऔर भी

एक चक्र है जो अनवरत चलता रहता है। समय की घड़ी में कोई चाभी भरने की जरूरत नहीं। न ही उसमें नई बैटरी लगानी पड़ती है। समय के साथ हर चीज परिपक्व होती है। पेड़-पौधों से लेकर इंसान और ज्ञान व परंपरा तक। अप्रैल में इस कॉलम को दो साल पूरे हो जाएंगे। नहीं पता कि यहां दिया जा रहा ‘अर्थ’ आपके कितने ‘काम’ का बन पाया है। इसे तो आप ही बेहतर बता सकते हैं। हां,औरऔर भी