चप्पे-चप्पे पर कोई न कोई काबिज़ है। हर विचार किसी ब्रह्म ने नहीं, इंसान ने ही फेंके हैं और उनके पीछे किसी न किसी का स्वार्थ है। हम भी स्वार्थ से परे नहीं। ऐसे में विचारों को अगर निरपेक्ष सत्य मानते रहे तो कोई दूसरा हमें निगल जाएगा।और भीऔर भी

प्रकृति खुद को नई करती रहती है तो हर तरफ जीवन है। समाज को हमने, इंसानों ने बनाया है जिसकी संरचना चरण-दर-चरण जटिल होती जा रही है। इसे हम बराबर नया नहीं करते रहे तो इसमें जान नहीं बचेगी, वो मृत हो जाएगा।और भीऔर भी

सब कुछ देखने के तरीके पर निर्भर करता है। चाहो तो सारी दुनिया दोस्तों से भरी नजर आएगी। पेड़-पालव तक मदद के लिए हाथ बढ़ाते दिखेंगे। और, चाहो तो घर का आदमी भी बैरी दिखेगा। इसमें से चुनना आपको ही है।और भीऔर भी