इंसानों की इस दुनिया में भगवान की तलाश बड़ी रिस्की है। न जाने किस भेष में भगवान नहीं, कोई शैतान या महाठग मिल जाए! फिर, जब सब कुछ अपने ज्ञान, कर्म और नेटवर्किंग से मिलना है तो ऐसा संगीन रिस्क उठाने में फायदा ही क्या।  और भीऔर भी

अलौकिक नहीं, लौकिक शक्तियां ही हमें बुरे वक्त से उबारती है। कुछ को हम देख लेते हैं, ज्यादातर को नहीं। यहां तक कि साथ देनेवाले तक को भी अलौकिक शक्तियों का दूत मानते हैं। धंधेबाज़ इसका फायदा उठाकर अपना वक्त चमका लेते हैं।और भीऔर भी

कुछ भी पूर्ण नहीं। कुछ भी अंतिम नहीं। इसलिए पुराने आग्रहों से चिपके रहने का कोई फायदा नहीं। नए को लपाक से पकड़ लें। पुराना उसमें सुधरकर समाहित हो जाएगा। पुराने को पकड़े रहे तो नया भरे हुए प्याले से बाहर ही छलकता रहेगा।और भीऔर भी

कांच बनने से क्या फायदा? जो जैसा आता है, वैसा ही निकल जाता है। बनो तो कम से कम आईना बनो, जिसमें दूसरे अपनी शक्ल देख सकें। सबसे अच्छा तो यह है कि प्रिज्म बनो जिससे निकलकर प्रकाश के सातों रंग अलग-अलग हो जाते हैं।और भीऔर भी

सब कुछ गोल है तो देख पाने की सीमा है। पर फायदा यह है कि आगे क्या होनेवाला है, इसका आभास पहले ही हो जाता है। सूरज की लालिमा बाद में आती है। रात की कालिमा उससे पहले ही छंटने लगती है।और भीऔर भी