सच-झूठ के बीच कभी रहा होगा काले-सफेद या अंधेरे उजाले जैसा फासला। लेकिन अब यह फासला इतना कम हो गया है कि कच्ची निगाहें इसे पकड़ नहीं सकतीं। जौहरी की परख और नीर-क्षीर विवेक पाना जरूरी है।और भीऔर भी

इस जहान में निरपेक्ष या निष्पक्ष जैसा कुछ नहीं। यह कोई मंजिल नहीं, एक अवस्था है प्रकृति के स्वभाव के साथ एकाकार होने की। तलवार की धार पर संतुलन नहीं बन पाता तो हम इधर या उधर के हो जाते हैं।और भीऔर भी

सतह के नीचे, समय के पार बहुत कुछ घटता रहता है, हम नहीं देख पाते। सूरज छिपता है, खत्म नहीं होता। शांत पृथ्वी के भीतर चट्टानें दरकती हैं, जलजला आता है। सावधान! शांतिभंग का खतरा है, किसान अशांत हैं।और भीऔर भी

कभी ये मत सोचना कि इन बेजान आंकड़ों से हमारा क्या लेना-देना। हरेक आंकड़े का वास्ता किसी न किसी जिंदगी से होता है। वे कहीं न कहीं चल रहे जीवन के स्पंदन का हिसाब-किताब होते हैं।और भीऔर भी