जो कोई शेयर बाज़ार में तीन साल से ज्यादा वक्त का लम्बा निवेश करना चाहता है, उसे यही नहीं देखना चाहिए कि कंपनी अच्छी व संभावनामय हो, बल्कि यह भी देखना चाहिए कि उसका शेयर सस्ता हो। अन्यथा, अच्छी से अच्छी कंपनी ज्यादा भाव पर खरीद लो तो बाद में पछताना पड़ता है। इस तरह पछताने से अच्छा है कि अभी उसके शेयर को गिरकर माकूल रेंज में आने दिया जाए। मान लो कि गिरकर सही रेंजऔरऔर भी

ट्रेडिंग का मकसद शेयरों के तात्कालिक उतार-चढ़ाव से कम समय में मुनाफा कमाना होता है। इसलिए उसमें हमेशा लक्ष्य बनाकर चलना होता है। लेकिन निवेश का मकसद विजय अभियान पर निकली कंपनियों की सवारी करना है। शिनाख्त सही निकली तो ऐसी कंपनियों के शेयर दोगुने से दोगुने होते चले जाते हैं और निवेश करते वक्त बनाया गया लक्ष्य बार-बार फतेह होता रहता है। इसलिए निवेश में लक्ष्य पर पहुंचते ही निकल जाने में समझदारी नहीं है। कंपनीऔरऔर भी

जीवन में जो चीजें नहीं करनी हों, उनका पता हो (जैसे – हिंसा नहीं करनी, चोरी नहीं करनी, झूठ नहीं बोलना, नशा नहीं करना और व्यभिचार नहीं करना) तो हर तरफ कुशल-मंगल व सुकून रहता है। इसी तरह शेयर बाज़ार में पता हो कि कैसी कंपनियों या स्टॉक्स से बचकर रहना है तो निवेश बड़ा सुखदायी व लाभप्रद होता है। जीवन में ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिससे दूसरों को तकलीफ व परेशानी हो और शेयर बाज़ारऔरऔर भी

दिलों में सिहरन-सी है, दिमाग में भय-सा है कि शेयर बाज़ार कभी भी क्रैश हो सकता है। चीन का आर्थिक संकट और अमेरिका में लटके पड़े प्रमुख सरकारी बिल इन आशंकाओं के ठोस आधार हैं। ऊपर से बढ़ती मुद्रास्फीति और उसके असर को सम करने के लिए ब्याज दरें बढ़ाने पर विचार। बावजूद इसके बाज़ार थोड़ा-बहुत दम मारकर फिर चढ़ जाता है। चीन से उपजी चिंता ज्यादा ठोस है क्योंकि रीयल एस्टेट फर्म एवरग्रांड के अलावा वहांऔरऔर भी

अपने शेयर बाज़ार में सक्रिय ज्यादातर लोगों की मानसिकता अब भी सट्टेबाज़ी की है। वे दिमाग से नहीं, किस्मत से खेलते हैं और बेहद लालच व भय की भावनाओं में झूलते रहते हैं तो तमाम शेयरों के भाव अतियों पर घूमते हैं। कभी बहुत ज्यादा तो कभी बहुत कम। ट्रेडिंग में तो कम पर खरीदो, ज्यादा पर बेचो का तरीका चलता ही है। लम्बे निवेश में भी हमें यह रणनीति अपनानी चाहिए। बाज़ार का जैसा स्वभाव है,औरऔर भी

अंधा भी बता सकता है कि शेयर बाज़ार आज की ग्लोबल दुनिया में अर्थव्यवस्था का आईना नहीं रह गया है। शेयरों का चढ़ना-गिरना देशी सरहदों को तोड़कर हर तरफ बह रही विदेशी पूंजी तय करने लगी है। दुनिया भर के शेयर बाज़ार कमोबेश एक लय में उठते-गिरते हैं। इससे निवेश व ट्रेडिंग का रिस्क बहुत बढ़ गया है। यही नहीं, भारतीय शेयर बाज़ार जिस तरह बेरोकटोक चढ़ता जा रहा है, उसने हमारी अर्थव्यवस्था को बेहद नाजुक स्थितिऔरऔर भी

शेयर बाज़ार सस्ता है या महंगा, इसका एक प्रमुख पैमाना है बाज़ार पूंजीकरण और देश के जीडीपी का अनुपात। अभी हमारा बाज़ार पूंजीकरण 255.58 लाख करोड़ रुपए है जबकि जीडीपी 209.08 लाख करोड़ रुपए तो दोनों का अनुपात 122.24% निकला। इसका लंबे समय का औसत लगभग 80% है तो बाज़ार 52% से ज्यादा महंगा है। दूसरे, सेंसेक्स का पी/ई अनुपात अभी 30.33 गुना है, जबकि उसका लंबे समय का औसत 20.22 गुना है। इस पैमाने से भीऔरऔर भी

सोचो कि बाज़ार (निफ्टी/सेंसेक्स) गिर जाएगा तो वो बढ़ जाता है और सोचो कि बढ़ेगा तो गिर जाता है। यह हमारा या आपका ही नहीं, बड़े-बड़े दिग्गजों का भी हाल है। कारण यह कि आप लाखों-करोड़ों लोगों के मन में क्या भाव व भावनाएं चल रही हैं, उनका अंदाज़ा तो लगा सकते हैं, पर सटीक हिसाब नहीं लगा सकते। इसीलिए छोटी अवधि में शेयर बाज़ार की चाल की सटीक भविष्यवाणी करना असंभव है। फिर भी लाखों ट्रेडरऔरऔर भी

अगर आप ट्रेडर हैं तो आपको शेयर बाज़ार के उन्मादी स्वभाव से पार पाने की कला विकसित करनी पड़ेगी। लेकिन अगर आप लम्बे समय के निवेशक हैं तो इसको लेकर आपको खास चिंता नहीं करनी चाहिए क्योंकि तीन से पांच साल या इससे ज्यादा वक्त में शेयर बाज़ार का अंतिम स्वभाव अच्छी कंपनियों में हो रहे मूल्य सृजन को सामने लाने का रहा है। हां, निवेश से पहले आपको कंपनी के बिजनेस, उसके पीछे सक्रिय उद्यमी केऔरऔर भी

सिद्धांत कहता है कि कंपनी का शेयर उसके इन्ट्रिन्जिक या अंतर्निहित मूल्य से नीचे लेना बाज़ार से लाभ कमाने का सबसे सुरक्षित तरीका है। दुनिया के सबसे सफल निवेशक वॉरेन बफेट ने यही तरीका अपनाकर अरबों-खरबों कमाए हैं। लेकिन अपने यहां आज की हकीकत क्या है? बहुत सारे शेयर अपने अंतर्निहित मूल्य से काफी नीचे ट्रेड हो रहे हैं, जबकि तमाम हल्की कंपनियों के शेयर धन के प्रवाह की बदौलत आसमान छूते जा रहे हैं। देश-विदेश काऔरऔर भी