हर बड़ी कंपनी अच्छी नहीं होती और हर छोटी कंपनी खराब नहीं होती। यह अलग बात है कि एफआईआई जैसे बड़े निवेशकों के लिए छोटी कंपनियां उस ‘मछली जल की रानी है’ की तरह होती हैं जिन्हें ‘हाथ लगाओ डर जाएगी, बाहर निकालो मर जाएगी।’ असल में इन कंपनियों की इक्विटी बेहद कम होती है जबकि एफआईआई की न्यूनतम खरीद भी अपेक्षाकृत बहुत बड़ी होती है। उनके घुसते ही ऐसी कंपनियों के शेयर चढ़ जाते और निकलते ही धराशाई हो जाते हैं। बड़े निवेशकों के अभाव में मजबूत छोटी कंपनियों के भी शेयर अक्सर डूबे रहते हैं। उनकी स्थिति दूरदराज इलाकों के उन प्रतिभाशाली खिलाड़ियों जैसी होती है जो राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय नज़र में आने पर जगमगाने लगते हैं। आज तथास्तु में ऐसी ही एक छोटी कंपनी…
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