जब भी कभी रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति या उसकी समीक्षा पेश करनेवाला होता है तो उसके हफ्ते दस-दिन पहले से दो तरह की पुकार शुरू हो जाती है। बिजनेस अखबारों व चैनलों पर एक स्वर से कहा जाता है कि ब्याज दरों को घटाना जरूरी है ताकि आर्थिक विकास की दर को बढ़ाया जा सके। वहीं रिजर्व बैंक से लेकर राजनीतिक पार्टियों व आम लोगों की तरफ से कहा जाता है कि मुद्रास्फीति पर काबू पाना जरूरीऔरऔर भी

जिंदगी के हाईवे पर मुसीबतें इसलिए नहीं आतीं कि आप लस्त होकर चलना ही बंद कर लें, बल्कि मुसीबतों का हर दौर आपको वह मौका उपलब्ध कराता है जब आप ठहरकर अब तक के सफर की समीक्षा और आगे की यात्रा की तैयारी कर सकते हैं।और भीऔर भी

उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री के वी थॉमस ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत आवंटित खाद्यान्न के उठाव और इनके सुरक्षित भंडारण की समीक्षा करने के लिए अपने मंत्रालय के अधिकारियों को अगले दो-तीन हफ्तों में राज्यों का दौरा करने का निर्देश दिया है। अपर सचिव और संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारियों को राज्यवार जिम्मेदारी दी गई है और उनसे जिलेवार समीक्षा करने को कहा गया है। उन्हें यह भी निर्देश दिया है किऔरऔर भी

रिजर्व बैंक ग्राहक सेवाओं को लेकर बैंकों के प्रति अपना रुख कड़ा करनेवाला है। बहुत संभावना है कि सेबी के पूर्व चेयरमैन एम दामोदरन की अध्यक्षता में बैंकों की ग्राहक सेवाओं पर गठित समिति हफ्ते भर बाद 15 फरवरी को अपनी रिपोर्ट रिजर्व बैंक को सौंप देगी। वैसे, यह रिपोर्ट के आने में करीब दो हफ्ते की देर हो चुकी है क्योंकि रिजर्व बैंक ने 2 नवंबर 2010 को मौद्रिक नीति की दूसरी त्रैमासिक समीक्षा में कहाऔरऔर भी

कल अचानक जिस तरह की कयासबाज़ी बढ़ गई थी कि रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति की तीसरी त्रैमासिक समीक्षा में ब्याज दरें 0.50 फीसदी बढ़ा सकता है, वह आज मंगलवार को पूरी तरह हवाई निकली। रिजर्व बैंक ने उम्मीद के मुताबिक रेपो और रिवर्स रेपो दर में 0.25 फीसदी की वृद्धि कर दी है। अब तत्काल प्रभाव से रेपो दर 6.25 फीसदी से बढ़कर 6.5 फीसदी और रिवर्स रेपो दर 5.25 फीसदी से बढ़कर 5.50 फीसदी हो गईऔरऔर भी

शेयर बाजार के विशेषज्ञों का मानना है कि बीते सप्ताह मामूली सुधार के बाद 25 जनवरी को बहुप्रतीक्षित भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समीक्षा बैठक से इस सप्ताह बाजार की दिशा निर्धारित होगी। रेपो व रिवर्स रेपो दर 0.25 फीसदी बढ़ सकती है, जबकि सीआरआर को 6 फीसदी पर यथावत रखे जाने की उम्मीद है। बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) में 21 जनवरी को समाप्त सप्ताह में उतार-चढ़ाव का रूख दिखाई पड़ा और सप्ताहांत में यह 0.77औरऔर भी

मुद्रास्फीति की दर नवंबर में घटकर 7.48 फीसदी पर आ गई है। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने इससे उत्साहित होकर भरोसा जताया है कि मार्च 2011 तक मुद्रास्फीति की घटकर 6 फीसदी रह जाएगी। इससे और कुछ हो या न हो, इतना जरूर साफ हो गया है कि गुरुवार 16 दिसंबर को पेश की जानेवाली मौद्रिक नीति की मध्य-त्रैमासिक समीक्षा एकदम ठंडी रहेगी। इसमें ब्याज दरें बढ़ने की कोई उम्मीद नहीं है। यानी न तो रेपो दरऔरऔर भी

दो महीने तक लस्टम-पस्टम चलने के बाद देश की औद्योगिक विकास दर फिर दहाई अंक में आ गई है। औदियोगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) से नापी जानेवाली यह दर अक्टूबर में 10.8 फीसदी रही है, जबकि अगस्त में यह 6.91 फीसदी और सितंबर में मात्र 4.4 फीसदी ही थी। योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोटेंक सिंह आहूलवालिया अक्टूबर के आंकड़ों से इतने उत्साहित हैं कि कहने लगे हैं कि यह (आईआईपी की विकास दर) पूरे वित्त वर्ष 2010-11 मेंऔरऔर भी

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने स्वीकार किया है कि देश के कुछ श्रम कानून ऐसे हैं जिन्होंने अपेक्षित नतीजे नहीं दिए हैं। ऐसे कानूनों ने रोजगार के विकास को चोट पहुंचाई है। आज जरूरत है कि हम इन कानूनों की समीक्षा करें। प्रधानमंत्री ने मंगलवार को राजधानी दिल्ली में 43वें भारतीय श्रम सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए यह बात कही। उन्होंने कहा, “हमने आजादी के बाद से कई प्रगतिशील श्रम कानून बनाए हैं और उससे पहले भी देशऔरऔर भी