देश के लिए सोचना आसान है, करना कठिन। सोचने के लिए बस भावना चाहिए, जबकि करने के लिए सही हालात का सच्चा ज्ञान जरूरी है। भावना में सच्चे, ज्ञान में कच्चे रहे तो सत्ता के लिए लार टपकाता कोई समूह हमारा इस्तेमाल कर लेता है।और भीऔर भी

यह देश गांधी, सुभाष व पटेल का था, तब था। अभी हमारा है। जब हैं, तभी तक है क्योंकि देश तो वह पौध है जो पीढ़ी दर पीढ़ी लहलहाती रहती है। जो अगली पीढ़ी की नहीं सोचता, वह देशभक्त नहीं, भोगी है।और भीऔर भी

बेधड़क निडर होकर जीनेवाले लोग ही महान बनते हैं। अगर हम देश में निडर होकर जीने का माहौल नहीं दे सकते तो भारत महान कभी नहीं बन सकता है और यहां बौनों की ही फौज पैदा होती रहेगी।और भीऔर भी

देश यकीनन वहां रहनेवालों से बनता है। लेकिन उसे रहने लायक बनाती हैं स्थानीय से लेकर राज्य व राष्ट्रीय सरकारें। अगर हर तरफ गंदगी, कदाचार व भ्रष्टाचार है तो पूरा सरकारी तंत्र ही देशद्रोही है।और भीऔर भी

ज़िंदगी हमारी अपनी है। पर धरती हम साझा करते हैं। हवा-धूप साझा करते हैं। दुनिया साझा करते हैं। देश साझा करते हैं। प्रशासन व राजनीतिक तंत्र साझा करते हैं। जो साझा है, उसकी भी तो फिक्र जरूरी है।  और भीऔर भी

विवेक बघार डाला स्वार्थों के तेल में। आदर्श खा गए! कीचड़ में धंस गए!! अब तक क्या किया, जीवन क्या जिया! बहुत-बहुत ज़्यादा लिया, दिया बहुत-बहुत कम। मर गया देश। अरे, जीवित रह गए तुम!!और भीऔर भी

ज़िदगी तो हम अकेले ही जीते हैं। परिवार इसे आसान व रागात्मक बना देता है। समाज इसे लय व ताल से भर देता है। देश इसे सुरक्षित व उदात्त बना देता है। आखिर कौन हैं वे जो देश को ऐसा बनने नहीं दे रहे?और भीऔर भी