एवीटी नेचुरल प्रोडक्ट्स का शेयर लगातार कुलांचे मार रहा है। 28 सितंबर 2010 से 28 जून 2011 के बीच के नौ महीनों में वह 88.40 रुपए के न्यूनतम स्तर से 287.90 रुपए के उच्चतम स्तर तक पहुंच गया। साल भर से भी कम वक्त में 225 फीसदी से ज्यादा का रिटर्न! बीते जून माह में ही यह दोगुना हो गया है। एक जून को नीचे में 140.15 रुपए पर था और 28 जून को ऊपर में 287.90औरऔर भी

आंध्रा शुगर्स सिर्फ चीनी नहीं बनाती। वह इसके अलावा एल्कोहल व उससे संबंधित रसायन, एस्पिरिन, क्लोरो एल्कली – सल्फ्यूरिक एसिड, सुपर फॉस्फेट व कॉस्टिक सोडा और बिजली तक बनाती है। इन सभी रसायनों से उसे फायदा हो रहा है, जबकि चीनी उसके गले का कंटक बन गई है। वित्त वर्ष 2010-11 के नतीजों के अनुसार चीनी से हुई उसका बिक्री साल भर पहले के 211.42 करोड़ रुपए से 51.75 फीसदी घटकर 102.01 करोड़ रुपए रह गई औरऔरऔर भी

बाजार डांवाडोल है। कभी इधर तो कभी उधर भाग रहा है। यह 2008 में लेहमान के संकट के बाद की स्थिति का दोहराव है। उस वक्त भी सारे पंटर और बाजार के पुरोधा कह रहे थे कि सेंसेक्स 6000 तक चला जाएगा। अक्सर लोगबाग टीवी स्क्रीम पर आ रही कयासबाजी देखते हैं और मान बैठते हैं कि जैसा कहा जा रहा है, वैसा ही होगा। लेकिन वे एनालिस्टों की चालाकी पर गौर नहीं करते हैं जो कहतेऔरऔर भी

देश के बैंक इस समय एसेट-लायबिलिटी में जबरदस्त मिसमैच या असंतुलन का सामना कर रहे हैं। 19 नवंबर से 17 दिसंबर तक के दो पखवाड़ों में उनकी जमाराशि में 49,817 करोड़ रुपए की कमी आई है, जबकि इसी दौरान उनके द्वारा दिए गए ऋण 81,806 करोड़ रुपए बढ़ गए हैं। इस अंतर को पूरा करने के लिए बैंक लगातार रिजर्व बैंक की चलनिधि समायोजना सुविधा (एलएएफ) का इस्तेमाल कर रहे हैं और हर दिन सवा लाख करोड़औरऔर भी

लंबे समय की बात छोड़िए, आपको तो थोड़े समय के लिए भी बाजार की दशा-दिशा को लेकर फिक्र करने की जरूरत नहीं है। अगर हम वित्त वर्ष 2011-12 के अनुमानित लाभ को आधार बनाएं तो भारतीय बाजार अभी 16 के पी/ई अनुपात पर चल रहा है जो इक्विटी मूल्यांकन के वैश्विक मापदंड से काफी नीचे है। इसलिए उन लोगों को कहने दीजिए, जो कहते हैं कि भारतीय बाजार महंगा हो चला है और इसमें अब गिरावट आनीऔरऔर भी

रिजर्व बैंक ने तीसरी तिमाही के बीच में मौद्रिक नीति की समीक्षा करते वक्त तरलता के संकट को स्वीकार किया है और इसे दूर करने के लिए उसने 18 दिसंबर से वैधानिक तरलता अनुपात (एसएलआर) को 25 फीसदी के मौजूदा स्तर से घटाकर 24 फीसदी कर दिया है। साथ ही उसने तय किया है कि अगले एक महीने में वह खुले बाजार ऑपरेशन (ओएमओ) के तहत नीलामी से 48,000 करोड़ रुपए के सरकारी बांड खरीदेगा। उसने सीआरआरऔरऔर भी

सेंसेक्स का 20,500 अंक पर पहुंचना और चालू वित्त वर्ष 2010-11 के अनुमानित लाभ के 21 पी/ई अनुपात पर ट्रेड होना निश्चित रूप से ऐसे पहलू हैं जिन पर निवेशकों को ध्यान देने की जरूरत है। बाजार की मौजूदा तेजी की खास वजह ज्यादा तरलता या लिक्विडिटी है। इसलिए हमें खुद से यह सवाल पूछना चाहिए कि यह तरलता कब तक रहेगी? अगले दो महीने में 77,000 करोड़ रुपए के आईपीओ आने हैं जो बाजार से भारीऔरऔर भी

बाजार ने तेजी का एक ऐतिहासिक मुकाम हासिल कर लिया। सेंसेक्स 20,000 के पार तो निफ्टी 6000 के पार जाकर बंद हुआ। इस मौके पर मैं अपनी खुशी शब्दों में बयां नहीं कर सकता। फिर भी आपको चेतावनी देने से खुद को नहीं रोक पा रहा। एक बात जान लें कि जुनून जितना तल्ख होगा, करेक्शन उतना ही गहरा होगा और आपकी पूरी बैलेंस शीट चंद दिनों में साफ हो सकती है। मगर, शॉर्ट सौदे करते वक्तऔरऔर भी

डेरिवेटिव सौदों में पिछले तीन दिनों से लांग पोजिशन को समेटा जा रहा है और नए शॉर्ट सौदे किए जा रहे हैं। मंदड़ियों को यकीन हो चला है कि सितंबर में हिन्डेनबर्ग अपशगुन घटेगा और उन्होंने बिना किसी भय के सारी शॉर्ट पोजिशन सितंबर तक बढ़ा दी है। अब वे दुनिया के बाजारों पर अपशगुन का कहर गिरने का इंतजार करेंगे ताकि भारतीय बाजार को गिराया जा सके। ज्यादातर फंड बराबर यही कहे जा रहे हैं किऔरऔर भी

रिजर्व बैंक द्वारा रेपो में चौथाई और रिवर्स रेपो में आधा फीसदी वृद्धि करने के बावजूद अक्टूबर से पहले होम या ऑटो लोन पर ब्याज दरें बढ़ने की उम्मीद नहीं है। यह कहना है ज्यादातर बैंकरों का। उनका मानना है कि मौद्रिक नीति के उपायों से ब्याज पर दबाव जरूर बढ़ जाएगा, लेकिन अक्टूबर से कर्ज की मांग बढ़ने पर ही वे इसकी दरें बढ़ाने की स्थिति में होंगे। देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई के चेयरमैनऔरऔर भी