इस ज़माने में पैरों से नीचे की ज़मीन इतनी तेज़ी से खिसक रही है कि अपनी सुध खुद नहीं ली तो दूसरे को आपकी परवाह की फुरसत नहीं। न सरकार को जनता की सुध है और न ही संतों को। यहां तो हर किसी को अपनी ज़मीन बचाने की पड़ी है।और भीऔर भी

हर ज़माने में धन और शोहरत कमाने के रास्ते अलग होते हैं। जो इन रास्तों को छोड़कर चलते हैं, उन्हें शुरुआत में बहुत ही कठिन-कठोर परेशानी झेलनी पड़ती है। लेकिन अंततः कामयाब हो गए तो उनकी राह नए ज़माने की राह बन जाती है।और भीऔर भी

पहले सड़क ही बनती थी। अब स्काई-ओवर भी बनते हैं। पहले जमीन से मिलती थी सुरक्षा। अब अंतर-संबंधों का मकड़जाल सुरक्षा देता है। पहले सब कुछ मूर्त था। अब बहुत कुछ अमूर्त है। वाकई बदल गया है जमाना।और भीऔर भी