देश की राजनीति में सेवा भाव कब का खत्म हो चुका है। वो विशुद्ध रूप से धंधा बन चुकी है, वह भी जनधन की लूट का। इसे एक बार फिर साबित किया है गुजरात विधानसभा के नवनिर्वाचित सदस्यों ने। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) की तरफ से सजाए गए आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक राज्य की नई विधानसभा में 99 विधायक ऐसे हैं जो 2007 में भी विधायक थे। इनकी औसत संपत्ति बीते पांच सालों में 2.20 करोड़औरऔर भी

गुजरात में कुल मतदाताओं की संख्या 3.78 करोड़ है। वहां अकेले गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन या अमूल के नाम से लोकप्रिय सहकारी संस्था से जुड़े दुग्ध उत्पादक सदस्यों की संख्या 31.8 लाख है। ये 8.41 फीसदी मतदाता राज्य के 24 जिलों के 16,117 गांवों में फैले हैं। बीते साल 2011-12 में अमूल का सालाना कारोबार 11,668 करोड़ रुपए रहा है। इतनी भौगोलिक पहुंच और आर्थिक ताकत के बावजूद अमूल का कोई संगठित राजनीतिक प्रभाव नहीं है।औरऔर भी

जिस तरह लोकतंत्र में हर शख्स को बराबर माना गया है, माना जाता है कि कानून व समाज की निगाह में हर कोई समान है, उसी तरह सुसंगत बाजार के लिए जरूरी है कि उसमें हर भागीदार बराबर की हैसियत से उतरे। यहां किसी का एकाधिकार नहीं चलता। इसलिए एकाधिकार के खिलाफ कायदे-कानून बने हुए हैं। लोकतंत्र और बाजार के बीच अभिन्न रिश्ता है। लेकिन अपने यहां लोकतंत्र और बाजार की क्या स्थिति है, हम अच्छी तरहऔरऔर भी

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वन्यजीव संरक्षण को बढावा देने की योजना के तहत गुजरात सरकार ने लुप्तप्राय पक्षी सोनचिरैया को फलने-फूलने का माकूल माहौल देने के लिए कच्छ जिले में 1500 हेक्टेयर भूमि आवंटित की है। सोनचिरैया को अंग्रेजी में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (जीआईबी) कहा जाता है। राज्य सरकार ने ‘कच्छ ग्रेट इंडियन बस्टर्ड सैंक्चुअरी’ के नजदीक कच्छ के नालिया तालुका में दो वर्ग किलोमीटर में फैली भूमि आवंटित की है। इस लुप्तप्राय पक्षी के प्रजनन के लिए इस जगह कोऔरऔर भी

साल 1992 में देश में हाइड्रोकार्बन की खोज व उत्पादन का काम निजी क्षेत्र के लिए खोला गया और सेलन एक्सप्लोरेशन टेक्नोलॉजी तभी से धरती के भीतर से इन्हें निकालने का काम कर रही है। उसे शुरू में सरकार से गुजरात में खोजे गए तीन तेल क्षेत्रों – बकरोल, इंदरोरा व लोहार को विकसित करने का काम मिला। इसके बाद गुजरात में ही दो और तेल क्षेत्रों – ओग्नाज व कर्जीसन का काम भी मिल गया। कंपनीऔरऔर भी

ज़ाइडस वेलनेस करीब 3900 करोड़ रुपए के टर्नओवर वाले ज़ाइडस कैडिला समूह की कंपनी है। शुगर फ्री, एवरयूथ व न्यूट्रालाइट जैसे लोकप्रिय उत्पाद बनाती है। कुछ महीने पहले ही उसने माल्ट से बना फूड ड्रिक एक्टीलाइफ बाजार में उतारा है। छोटी है, पर बड़ी तेजी से बढ़ती कंपनी है। पिछले तीन सालों में उसकी बिक्री 81.25 फीसदी और शुद्ध लाभ 135.23 फीसदी की सालाना चक्रवृद्धि दर से बढ़ा है। नियोजित पूंजी पर उसका रिटर्न 74.33 फीसदी औरऔरऔर भी

धीरे-धीरे साफ होता जा रहा है कि सब शेयरों को थोक के भाव एक ही तराजू में नहीं तौला जा सकता। उसी तरह जैसे सब धान पाइस पसेरी नहीं तौलते। लांग टर्म या दो से दस साल के लिए अलग, मीडियम टर्म या दो महीने से दो साल तक के लिए अलग, शॉर्ट टर्म या हफ्ते दस दिन से दो महीने तक के लिए अलग और एकाध दिन की ट्रेडिंग के लिए अलग। फंडामेंटल्स के आधार परऔरऔर भी

ग्लास के बरतनों में बोरोसिल का ब्रांड इतना बड़ा व स्थापित है कि उसके नाम से नकली माल तक बनता है। प्रयोगशालाओं से लेकर माइक्रोवेब तक के लिए बोरोसिल का ग्लास सबसे मुफीद माना जाता है। इसे बनाने वाली कंपनी बोरोसिल ग्लास वर्क्स का गठन 1962 में अमेरिकी कंपनी कॉर्निंग ग्लास के साथ मिलकर किया गया। बाद में अमेरिकी कंपनी अपनी हिस्सेदारी भारतीय प्रवर्तकों – गुजरात के खेरुका परिवार को बेचकर निकल गई। ब्रांड को देखकर आपकोऔरऔर भी

2008 से लेकर अब तक के तीन सालों में देश में 1,55,939 कंपनियां बंद हो चुकी हैं। इनमें से सबसे ज्यादा 35,154 कंपनियां महाराष्ट्र की हैं। इसके बाद 27,972 कंपनियां दिल्ली, 24,055 कंपनियां आंध्र प्रदेश, 19,106 कंपनियां तमिलनाडु और 11,776 कंपनियां गुजरात की हैं। इस तरह 1,18,063 यानी 75% से ज्यादा बंद कंपनियां इन पांच राज्यों की ही हैं। इस दौरान बिहार की 1534, मध्य प्रदेश की 1546, राजस्थान की 2160 और उत्तर प्रदेश की 5593 कंपनियोंऔरऔर भी

कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, यूं ही कोई बेवफा नहीं होता। यूं ही बिना किसी बात पर कोई शेयर खाक नहीं होता। ऐसा तभी होता है जब लोग उसे बेचने पर उतारू हो जाएं। और, कोई यूं ही किसी शेयर को बेचने पर उतारू नहीं होता। उसके पीछे कुछ न कुछ ज्ञात-अज्ञात कारण, कुछ न कुछ स्वार्थ जरूर होता है। खासकर ऐसा जब किसी स्मॉल कैप कंपनी के साथ हो तो इन स्वार्थों की शिनाख्त जरूरी होऔरऔर भी