ग्लास के बरतनों में बोरोसिल का ब्रांड इतना बड़ा व स्थापित है कि उसके नाम से नकली माल तक बनता है। प्रयोगशालाओं से लेकर माइक्रोवेब तक के लिए बोरोसिल का ग्लास सबसे मुफीद माना जाता है। इसे बनाने वाली कंपनी बोरोसिल ग्लास वर्क्स का गठन 1962 में अमेरिकी कंपनी कॉर्निंग ग्लास के साथ मिलकर किया गया। बाद में अमेरिकी कंपनी अपनी हिस्सेदारी भारतीय प्रवर्तकों – गुजरात के खेरुका परिवार को बेचकर निकल गई।
ब्रांड को देखकर आपको यकीन नहीं आएगा कि बोरोसिल ग्लास वर्क्स की इक्विटी मात्र 3.96 करोड़ रुपए है। दस रुपए अंकित मूल्य में विभाजित इसके कुल 39 लाख 63 हजार 928 शेयर हैं। कंपनी का बाजार पूंजीकरण मात्र 299 करोड़ रुपए है। आम पैमाने पर इसे स्मॉल कैप कंपनी माना जाएगा। यूं तो कंपनी की इक्विटी में प्रवर्तकों का हिस्सा 55.49 फीसदी है। लेकिन इस पर कब्जा जमाने की कोशिशें तो हो ही सकती हैं। और भी कई वजहें हैं जिससे लगता है कि इसके अधिग्रहण की खिचड़ी कभी भी पक सकती है।
कंपनी का काम-धंधा फिलहाल ठीकठाक चल रहा है। पांच दिन पहले 13 अगस्त को उसने जून 2011 की तिमाही के नतीजे घोषित किए हैं। इनके मुताबिक चालू वित्त वर्ष के पहले तीन महीनों में कंपनी की बिक्री तो 24.50 करोड़ रुपए पर कमोबेश पिछले साल के 24.77 करोड़ रुपए के ही बराबर है। लेकिन उसका शुद्ध लाभ लगभग दोगुना होकर 119.81 फीसदी बढ़कर 2.12 करोड़ से 4.66 करोड़ रुपए पर पहुंच गया है।
हालांकि इन नतीजों पर गौर करें तो पता चलता है कि इस बार उसे 5.73 करोड़ रुपए तो अन्य आय से मिले हैं, जबकि पिछले साल की जून तिमाही में उसकी अन्य आय केवल 52 लाख रुपए थी। इस अन्य आय में से 4.55 करोड़ रुपए उसे अपने निवेश और खुद बांटे गए ऋणके ब्याज से मिले हैं। एक बात और है कि पिछले साल जहां कंपनी ने 1.30 करोड़ रुपए का ब्याज अदा किया था, वहीं इस बार उसे केवल 5 लाख रुपए का ब्याज देना पड़ा है।
पिछले पूरे वित्त वर्ष 2010-11 में कंपनी ने 119.10 करोड़ रुपए की ब्रिकी पर सामान्य गतिविधियों से 18.49 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया था। लेकिन इस दौरान उसने अपनी मरोल प्रोपर्टीज को बेचकर सारा टैक्स वगैरह चुकाने के बाद 629.31 करोड़ रुपए बनाए थे। इसे मिलाकर उसका कुल शुद्ध लाभ 647.80 करोड़ रुपए हो जाता है और उसका सालाना ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) निकलता है 1634.24 रुपए। इतना ईपीएस मैं तो पहली बार देख रहा हूं। खैर, असामान्य आय को निकाल दें तो उसका सालाना ईपीएस 44.52 रुपए बनता है। साथ ही इस समय कंपनी के पास 662.96 करोड़ रुपए के रिजर्व हैं। उसके शेयर की बुक वैल्यू 1684.14 रुपए है, जबकि बीएसई (कोड – 502219) में उसका शेयर कल 1.89 फीसदी गिरकर 746 रुपए पर बंद हुआ है।
जून तिमाही के नतीजों को शामिल कर दें तो उसका ठीक पिछले बारह महीनों (टीटीएम) का ईपीएस इस समय 59.39 रुपए है। इस तरह उसका शेयर अभी 12.56 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। यह पिछले साल भर का सबसे ऊंचा स्तर है। वैसे, 52 हफ्तों का इसका उच्चतम स्तर 947.85 रुपए है जो इसने 2 सितंबर 2010 को हासिल किया था, जबकि न्यूनतम स्तर 537 रुपए का है जहां यह शिखर पर पहुंचने के करीब तीन महीने बाद ही 8 दिसंबर 2010 को जा गिरा था।
डीआईआई के पास कंपनी के 0.54 फीसदी और एफआईआई के पास 13.77 फीसदी शेयर हैं। कंपनी के शेयरधारकों की कुल संख्या 4379 है। इनमें से सात बड़े शेयरधारकों के पास कंपनी के 24.31 फीसदी शेयर हैं। इनमें फिनक्वेस्ट सिक्यूरिटीज के पास 5.69 फीसदी, क्रेस्टा फंड के पास 4.04 फीसदी और किन्हीं वैशाली आर्य के पास 1.52 फीसदी शेयर हैं। कंपनी के चेयरमैन बजरंग लाल खेरुका हैं जिनके पास 1.93 फीसदी शेयर हैं। कंपनी लाभांश बराबर देती रही है। इस साल 5 अगस्त को उसने दस रुपए के शेयर पर 15 रुपए यानी 150 फीसदी का लाभांश दिया है।
कुल मिलाकर सीन यह बनता है कि बोरोसिल ग्लास वर्क्स एक तरह के संक्रमण व रीस्ट्रक्चरिंग से गुजर रही है। दो साल तक घाटा झेलने बाद अपनी आस्तियों को निकालकर फायदे में आई है। ऋण का बोझ उसने उतार फेंका है। शायद यहां से उसकी साफ-सुधरी विकास यात्रा शुरू हो जाए। उसके पास मौका अच्छा है। इस लिहाज से जोखिम उठानेवाले निवेशकों के लिए भी धन लगाने का यह अच्छा मौका है। लेकिन जो थोड़ा संभलकर चलना चाहते हैं, उन्हें फिलहाल इससे दूर ही रहना चाहिए। हां, इन्हीं प्रवर्तकों की एक और लिस्टेड कंपनी है गुजरात बोरोसिल, जो बराबर घाटे में है और जिसका शेयर अभी 8.34 रुपए पर चल रहा है।