यूं तो स्कूलों को बच्चों का वर्तमान व भविष्य गढ़ने का केन्द्र माना जाता है। लेकिन बीते कुछ सालों से स्कूलों के भीतर से बच्चों के शोषण और उत्पीड़न की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के मुताबिक बीते तीन सालों में स्कूलों के भीतर बच्चों के साथ होने वाली शारारिक प्रताड़ना, यौन शोषण, दुर्व्यवहार, हत्या जैसे मामलों में तीन गुना बढ़ोतरी हुई है। मौजूदा परिस्थितियां भी कुछ ऐसी हैं कि बच्चोंऔरऔर भी

बाल दिवस। चाचा नेहरू का जन्मदिन। पत्र-पत्रिकाओं में सरकारी विज्ञापन। सब शोशेबाजी है, नारा है। हकीकत यह है कि इन दिनों देश में बच्चों का पलायन तेजी से बढ़ रहा है और उसी अनुपात में उनके साथ उत्पीड़न की घटनाएं और आंकड़े भी। खास तौर से मजदूरी के लिए बच्चों को एक राज्य से दूसरे राज्य में आदान-प्रदान किए जाने का सिलसिला जोर पकड़ता जा रहा है। विभिन्न शोध-सर्वेक्षणों और रिपोर्टों से यह जाहिर भी हो रहाऔरऔर भी

बाल अधिकारों से जुड़ी लगभग सभी संधियों पर दस्तखत करने के बावजूद भारत बाल मजदूरों का सबसे बड़ा घर क्यों बन चुका है? इसी से जुड़ा यह सवाल भी सोचने लायक है कि बाल श्रम निषेध एवं नियंत्रण कानून, 1986 के बावजूद हर बार जनगणना में बाल मजदूरों की तादाद पहले से कहीं बहुत ज्यादा क्यों निकल आया करती है? वैसे, हकीकत इससे भी कहीं ज्यादा भयानक है। दरअसल बाल मजदूरी में फंसे केवल 15% बच्चे हीऔरऔर भी