लम्बे डग भरेगी स्ट्राइड्स आर्कोलैब

स्ट्राइड्स आर्कोलैब है तो 1990 में बनी और बैंगलोर में जमी भारतीय फार्मा कंपनी, लेकिन इसका तंत्र विश्व स्तर पर फैला हुआ है। अमेरिका, ब्राजील, मेक्सिको, इटली, पोलैंड व सिंगापुर में उत्पादन संयंत्र हैं तो करीब 70 देशों में मार्केटिंग नेटवर्क। देश में इसकी उत्पादन इकाइयां बैंगलोर, मैंगलोर, भरुच (गुजरात) और बोइसर (ठाणे, महाराष्ट्र) में हैं। बनाती तो जेनेरिक से लेकर ब्रांडेड फार्मा उत्पाद है। लेकिन ज़ोर स्टेराइल इंजेक्टेबल्स पर है। वह दुनिया के सबसे बड़ी सॉफ्ट जिलेटिन कैप्सूल निर्माताओं में शामिल है।

कंपनी का वित्त वर्ष साल के हिसाब से चलता है। साल 2010 में उसने समेकित रूप से 1695.84 करोड़ रुपए की बिक्री पर 141.18 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया था। महीने भर पहले 27 फरवरी को घोषित नतीजों के अनुसार दिसंबर 2011 में खत्म साल में उसने 2524.52 करोड़ रुपए की बिक्री पर 234.01 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया है। इस तरह साल भर उसकी बिक्री 48.86 फीसदी और शुद्ध लाभ 65.75 फीसदी बढ़ गया है। स्टैंड-एलोन नतीजों की बात करें तो साल 2011 में कंपनी की बिक्री 41.95 फीसदी बढ़कर 716.36 करोड़ रुपए और शुद्ध लाभ 60.30 फीसदी बढ़कर 117.92 करोड़ रुपए हो गया।

इसमें दिसंबर तिमाही का बड़ा योगदान है क्योंकि सितंबर 2011 की तिमाही में उसे बिक्री के 54.69 फीसदी बढ़कर 196.02 करोड़ रुपए हो जाने के बाद भी 65.19 करोड़ रुपए का घाटा लगा था। वहीं दिसंबर तिमाही में उसकी बिक्री तो 52.78 फीसदी बढ़कर 195.45 करोड़ रुपए पर पहुंची। लेकिन शुद्ध लाभ 134.49 फीसदी की छलांग लगाकर 155.77 करोड़ रुपए पर पहुंच गया। इस तरह अकेली दिसंबर तिमाही का शुद्ध लाभ पूरे साल से ज्यादा है। समेकित नतीजों की बात करें तो दिसंबर 2011 की तिमाही में कंपनी का शुद्ध लाभ 72.57 करोड़ रुपए रहा है, जो दिसंबर 2010 के शुद्ध लाभ 7.41 करोड़ रुपए का 9.79 गुना (879 फीसदी ज्यादा) है।

लेकिन समेकित और स्टैंड एलोन नतीजों की चकाचौंध से बाहर निकलें तो आगे की तस्वीर धुंधली नजर आती है। कंपनी ने दो महीने पहले जनवरी में ऑस्ट्रेलिया का ब्रांडेड फार्मा जेनेरिक बिजनेस दूसरी कंपनी वॉटसन फार्मास्यूटिकल्स को 1990 करोड़ रुपए में बेच दिया। कंपनी की करीब एक-तिहाई बिक्री इसी धंधे से आती थी। जाहिरा तौर पर आगे यह योगदान खत्म हो जाएगा। ब्रोकरेज फर्म मोतीलाल ओसवाल का आकलन है कि चालू वर्ष 2012 में कंपनी की बिक्री बढ़ने के बजाय करीब आठ फीसदी घट जाएगी। हालांकि शुद्ध लाभ 42 फीसदी बढ़ सकता है।

असल में कंपनी ऑस्ट्रेलिया का धंधा बेचकर अपने ऊपर चढ़े कर्ज का भारी बोझ कम करना चाहती है। 31 दिसंबर 2011 तक की स्थिति के अनुसार कंपनी पर 2566 करोड़ रुपए का कर्ज था। उसका मौजूदा ऋण इक्विटी अनुपात 1.67 : 1 का था। लेकिन ऑस्ट्रेलियाई धंधे को बेचने से मिली रकम से वह यह बोझ हल्का कर देगी। उसका भावी ऋण इक्विटी अनुपात 0.7 : 1 से नीचे आ जाएगा। इससे उसकी ब्याज अदायगी काफी कम हो जाएगी। नोट करें कि बीते साल उसका स्टैंड एलोन शुद्ध लाभ 117.92 करोड़ रुपए था, जबकि उसने 190.27 करोड़ रुपए का ब्याज चुकाया था।

मालूम हो कि कंपनी की 58.38 करोड़ रुपए की इक्विटी में 71.58 फीसदी पब्लिक के पास हैं, जबकि प्रवर्तकों के पास केवल 28.42 फीसदी हिस्सा है। लेकिन प्रवर्तकों ने इसका 69.66 फीसदी हिस्सा (कंपनी की कुल 19.80 फीसदी इक्विटी) गिरवी रखा हुआ है। शायद अब कर्ज को बोझ हल्का होने पर वे गिरवी रखे इन शेयरों को छुड़वा भी लेंगे। कंपनी पर एफआईआई ने बड़ा दांव लगा रखा है क्योंकि पब्लिक के हिस्से में उनका निवेश 37.71 फीसदी का है और उन्होंने दिसंबर तिमाही में अपना निवेश बढ़ाया है क्योंकि सितंबर 2011 तक यह 35.69 फीसदी था। कंपनी के 16.78 फीसदी शेयर घरेलू निवेशक संस्थाओं के पास हैं। बहुत सारे म्यूचुअल फंडों ने इसमें धन लगा रखा है।

ऐसी ही तमाम उम्मीदों के बीच स्ट्राइड्स आर्कोलैब के शेयर ने पिछले ही महीने 12 फरवरी को 612 रुपए का ऐतिहासिक शिखर पकड़ा है। फिलहाल उसका दस रुपए अंकित मूल्य का शेयर कल, 16 मार्च को बीएसई (कोड – 532531) में 580.15 रुपए और एनएसई (STAR) में 579.30 रुपए पर बंद हुआ है। स्टैंड एलोन रूप से उसका ईपीएस 11.22 रुपए है। इस तरह उसका शेयर 51.41 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। वहीं उसका समेकित ईपीएस 31.10 रुपए है जिसके आधार पर उसका शेयर 18.55 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है।

ऐसे में हम तो यही कहेंगे कि इस शेयर को फिलहाल थोड़ा ठंडा होने देना चाहिए। वैसे भी कंपनी ने नए साल में धंधे का पूर्वानुमान घोषित नहीं किया है तो बाजार इससे थोड़ा निराश है। कंपनी ने अपने इंजेक्टेबल्स बिजनेस में थोड़ी अनिश्चितता की बात कही है। कंपनी का मौजूदा रिटर्न ऑन इक्विटी भी मात्र 8 फीसदी है। ऐसे में मनाइए कि कुछ और नकात्मक बात हो जाए ताकि इसका शेयर और गिर जाए। अगर यह 510 रुपए के आसपास आ जाए तो इसके लपककर खरीद लेना चाहिए क्योंकि लंबे समय के लिए यह काफी मुफीद निवेश है। चार-पांच साल में पूंजी को दोगुना करने का दमखम रखता है यह स्टॉक। इसलिए नहीं कि इसमें किसी ऑपरेटर का खेल है, बल्कि इसलिए कि अब कर्ज का बोझ हल्का होने के बाद कंपनी तेजी से प्रगति करेगी।

हां, अंत में कुछ और सूचनाएं। कंपनी एचआईवी/एड्स, टीबी और मलेरिया जैसी बीमारियों की दवाओं के अंतरराष्ट्रीय बाजार में अच्छी साख रखती है। उसने क्लिंटन फाउंडेशन के साथ टाई-अप कर रखा है। वह विश्व बैंक, अफ्रीकी विकास बैंक और यूनिसेफ जैसी वैश्विक संस्थाओं की अनुमोदित सप्लायर है।

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