केंद्र सरकार द्वारा रिजर्व बैंक की सचित निधि पर हाथ साफ करना न केवल अनैतिक, बल्कि देश के वित्तीय स्थायित्व के लिए भी घातक है। शुक्र है कि साल 2008 जैसा वैश्विक वित्तीय संकट दोबारा नहीं आया। बिमल जालान समिति ने तय किया था कि 3 जून 2018 तक रिजर्व बैंक के पास मुद्रा व स्वर्ण पुनर्मूल्यांकन रिजर्व खाते में जो 6.91 लाख करोड़ रुपए पड़े हैं, उसे सरकारी पहुंच से दूर रखा जाए तो सरकार लाख कोशिशों के बावजूद इसे नहीं झटक पाई। जालान समिति ने यह भी कहा था कि रिजर्व बैंक के बचाए मुनाफे से बने आकस्मिक रिजर्व को कुल आस्तियों के 5.5% से 6.5% तक रखा जाए। तब रिजर्व बैंक के पास आकस्मिक रिजर्व 2.32 लाख करोड़ रुपए के थे। सरकार के दबाव में रिजर्व बैंक ने आकस्मिक रिजर्व को आस्तियों के निचले हिस्से 5.5% तक रखने का फैसला कर लिया और सरकार को 52,637 करोड़ रुपए ऊपर से देने की जुगत भिड़ा ली। साथ ही रिजर्व बैंक ने 2018-19 में हासिल किया गया 1,23,414 करोड़ रुपए का शुद्ध सरप्लस सरकार को दे दिया। उसके बाद पिछले चार सालों में रिजर्व बैंक 2,73,973 करोड़ रुपए और सरकार को दे चुका है। इस तरह पांच साल में सरकार उससे कुल 4,50,024 करोड़ रुपए की वसूली कर चुकी है। अब शुक्रवार का अभ्यास…
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