इस साल फरवरी से म्यूचुअल फंड निवेशकों की संख्या में शुरू हुआ घटने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। यह संख्या म्यूचुअल फंड फोलियो से गिनी जाती है। म्यूचुअल फंडों के साझा मंच एम्फी (एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड एसोसिएशन इन इंडिया) के आंकड़ों के अनुसार फरवरी से अगस्त 2010 के बीच म्यूचुअल फंड फोलियो की संख्या में 5.84 लाख की कमी आ चुकी है। फरवरी में कुल म्यूचुअल फोलियो 483.09 लाख थे, जबकि अगस्त अंत तक यह संख्या घटकर 477.25 लाख पर आ गई है।
चौंकानेवाली बात यह है कि फोलियो में सबसे ज्यादा कमी इक्विटी आधारित स्कीमों में आई है जिसमें आम निवेशक ज्यादा पैसा लगाते हैं। फरवरी अंत से अगस्त अंत तक म्यूचुअल फंडों की इक्विटी आधारित स्कीमों के फोलियो की संख्या में 11.96 लाख की भारी कमी आई है। एम्फी के मुताबिक यह संख्या फरवरी में 412.89 लाख थी, जबकि अगस्त में यह 400.93 लाख रह गई है। शुक्र की बात यह है कि इन छह महीनों में म्यूचुअल फंडों की ऋण आधारित स्कीमो का फोलियो 5.67 लाख और ईटीएफ (एक्सचेंज ट्रेडेड फंड) का फोलियो 1.05 लाख बढ़ गया है। नहीं तो उसके बैलेस फंड और फंड ऑफ फंड फोलियो में भी कमी दर्ज की गई है। इस सारी कमी को ऋण आधारित स्कीमों और ईटीएफ की बढ़त ने संभाल लिया, तभी फोलियो में कमी 5.84 लाख तक आ गई है।
बता दें कि म्यूचुअल फंडों की इनकम और मनी मार्केट लिक्विट स्कीमें ऋण आधारित होती हैं। उनकी कुल आस्तियों का 99 फीसदी हिस्सा इन्हीं ऋण आधारित स्कीमों से आ रहा है। जैसे अगस्त 2010 में उनकी कुल आस्तियां (एयूएम) 6,97,511 करोड़ रुपए थीं। इसमें से 1,55,308 करोड़ रुपए इनकम स्कीमों से और 5,36,091 करोड़ रुपए मनी मार्केट लिक्विड फंडों से आए थे। इस तरह इन ऋण आधारित स्कीमों में ही म्यूचुअल फंडों की 6,91,399 करोड़ रुपए की आस्तियां थीं, जो अगस्त के कुल एयूएम का 99.12 फीसदी बनती हैं।
चक्कर यह है कि लिक्विड फंडों में लगभग सारा निवेश कॉरपोरेट क्षेत्र का है, जबकि इनकम स्कीमों में अधिकांश निवेश एचएनआई (हाई नेटवर्थ इंडीविजुअल) व कंपनियों का है। इन ऋण आधारित स्कीमों से जुड़े पोर्टफोलियो पिछले छह महीनों में बढ़ गए हैं। फरवरी में ऋण स्कीमों से जुडे फोलियो 36.93 लाख थे और अगस्त तक बढ़कर 42.60 लाख हो गए। इसी दौरान ईटीएफ फोलियो की संख्या 1.90 लाख से बढ़कर 2.95 लाख हो गई।
कुछ विश्लेषक म्यूचुअल फंड के निवेशकों की संख्या में आ रही कमी को पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी द्वारा अगस्त 2009 से एंट्री लोड खत्म करने के फैसले को मानते हैं। इसके तहत नियम बन गया है कि म्यूचुअल निवेशक की तरफ से जमा राशि में से एजेंट को कमीशन नहीं देंगे, बल्कि एजेंट को यह रकम निवेशक अलग चेक से खुद देगा। निवेशकों के हित में बना यह नियम अगर उद्योग के लिए इतना ही घातक होता तो नवंबर 2009 से फरवरी 2010 तक म्यूचुअल फंड निवेशकों की संख्या में इजाफा नहीं हुआ होता।
एम्फी के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार नवंबर 2009 में म्यूचुअल फंडों के कुल फोलियो 478.71 लाख थे, जिनमें से 411.38 इक्विटी स्कीमों से जुड़े थे। फरवरी 2010 तक म्यूचुअल फंडों के कुल फोलियो 483.10 लाख हो गए, जिसमें से 412.89 लाख का वास्ता इक्विटी स्कीमों से था। इस तरह नवंबर-फरवरी के बीच म्यूचुअल फंडों के कुल फोलियो 0.92 फीसदी और इक्विटी फोलियो 0.37 फीसदी बढ़े थे। लेकिन म्यूचुअल फंड निवेशकों के उत्साह को बनाए नहीं रख सके और अगले ही महीने से फोलियो की संख्या घटने लग गई।
नोट करने की बात यह है कि म्यूचुअल फंडों से निवेशकों का छिटकना उस दरमियान हुआ है जब शेयर बाजार तेजी की राह पर है। 2 मार्च 2010 को बीएसई सेंसेक्स 16,772 अंक पर था जो 1 सितंबर 2010 तक 8.5 फीसदी बढ़कर 18,205 पर पहुंच गया था। उसके बाद तो यह 19,500 के ऊपर चला गया है।