इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने 7 अप्रैल को ही पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी के उस आदेश पर लगाया गया स्टे उठा लिया जिसमें सहारा समूह की कंपनियों द्वारा आम जनता से धन जुटाने की मनाही की गई थी। इसका मतलब साफ हुआ कि सेबी द्वारा नवंबर 2010 में जारी आदेश लागू हो गया है और सहारा समूह की कंपनियां पब्लिक से धन नहीं जुटा सकतीं। लेकिन हिंदुस्तान टाइम्स समूह के बिजनेस अखबार, मिंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक सहारा इंडिया रीयल एस्टेट कॉरपोरेशन लिमिटेड और सहारा हाउसिंग इनवेस्टमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड अब भी आम लोगों से धन जुटा रही हैं।
सेबी ने इस खबर को बहुत गंभीरता से लिया है। सेबी के वकील आर एन त्रिवेदी का कहना है, “यह पूरी तरह से कोर्ट की अवमानना का मामला है। सहारा समूह पर अभी किसी भी तरह की धन उगाही पर बंदिश लगी हुई है। अगर हमें इसका (सहारा की कंपनियों द्वारा धन उगाही) प्रमाण मिल जाता है तो हम कोर्ट की अवमानना की कार्यवाही शुरू करेंगे।”
असल में सेबी ने 24 नवंबर 2010 को 34 पन्नों का एक आदेश जारी कर कहा था कि सहारा समूह अगले आदेश तक किसी भी रूप में पब्लिक से धन नहीं जुटा सकता। सहारा ने इसके बाद बाकायदा एक पत्र जारी कर कहा था कि सेबी के कुछ अधिकारी 9 लाख परिवारों की आजीविका से जुड़े सहारा इंडिया परिवार को बिना किसी वजह के जान-बूझकर परेशान कर रहे हैं।
सहारा ने इस आदेश के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील कर दी। हाईकोर्ट ने 13 दिसंबर को अंतरिम आदेश में सेबी के फैसले पर स्टे दे दिया। सेबी ने हाईकोर्ट के इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी जिस पर सुप्रीम कोर्ट 4 जनवरी 2011 को दिए गए फैसले में कहा कि सेबी को जांच का पूरा हक है। लेकिन कंपनियों को धन जुटाने से रोकने से उसने इनकार कर दिया। साथ ही मामले की सुनवाई कर रही मुख्य न्यायाधीश एस एच कपाडिया की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा था, “हम स्पष्ट करते हैं कि सेबी को इन कंपनियों के ओएफसीडी (ऑप्शनली फुली कनवर्टिबल डिबेंचर्स) के निवेशकों के नाम सहित सभी आवश्यक जानकारियां मांगने का हक है।”
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट में सहारा अपनी दो संबंधित कंपनियों – सहारा इंडिया रीयल एस्टेट कॉरपोरेशन लिमिटेड और सहारा हाउसिंग इनवेस्टमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड के ओएफसीडी के निवेशकों का ब्योरा देने को मजबूर हो गया। पता चला कि जिस ओएफसीडी इश्यू में निवेशकों की संख्या 50 से कम होने के आधार पर सहारा समूह सेबी के अधिकार क्षेत्र से बाहर होने का दावा करता रहा है, उसमें निवेशकों की असली संख्या 66 लाख है। यह हकीकत सामने आने के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 7 अप्रैल को सेबी के आदेश पर लगाया गया स्टे हटा लिया।
मिंट ने अपनी रिपोर्ट में सप्रमाण बताया है कि कैसे सेबी के आदेश के घेरे में आई सहारा इंडिया परिवार को उक्त दो कंपनियां अब भी निवेशकों से बाकायदा धन जुटा रही हैं। हालांकि रिपोर्ट में सहारा के प्रवक्ता को यह कहते हुए उद्धृत किया गया है कि उन्हें हाईकोर्ट के आदेश की जानकारी चार दिन बाद 11 अप्रैल को मिली। फिर 12 अप्रैल को छुट्टी थी। इसलिए वे नीचे तक सूचना नहीं पहुंचा पाए। उनका कहना है कि वे अदालत का सम्मान करते हैं और उसके फैसले का आदर करने को प्रतिबद्ध हैं।
लेकिन रिपोर्ट में महाराष्ट्र, मुंबई व गुजरात के तमाम एजेंटों व निवेशकों से मिली जानकारी के आधार पर बताया गया है कि कैसे सहारा समूह आम लोगों से बाकायदा चेक के जरिए धन ले रहा है। इसमें खास तौर पर मुंबई, सूरत और गोरखपुर के निवेशकों का अनुभव बताया गया है। सहारा समूह की तरफ से ऐसे-ऐसे बांड लोगों को बेचे जा रहे हैं जिनमें 5000 रुपए के निवेश पर 15 साल बाद 28,700 रुपए मिलने का दावा किया जा रहा है।
सहारा की तरफ से बेचे जा रहे तीन बांड हैं – निर्माण, अबोड और हाउसिंग बांड। इनमें से निर्माण बांड 18 महीनों से चार साल की अवधि का है, अबोड की परिपक्वता अवधि 5 से 10 साल है, जबकि हाउसिंग बांड 10 से 15 साल का बांड है।