आर्थिक सहयोग बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल करते हुए भारत, चीन, रूस, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका (ब्रिक्स) एक दूसरे को अपनी स्थानीय मुद्रा में कर्ज और अनुदान के लेनदेन पर सहमत हो गए हैं। ब्रिक्स देशों के बीच इस आशय के एक समझौते में चीन के शहर सान्या में हस्ताक्षर किए गए। इस पहल को अमेरिकी मुद्रा डॉलर पर निर्भरता और उसके वर्चस्व को घटाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।
समझौते के तहत ये देश एक दूसरे को स्थानीय मुद्रा में ऋण और अनुदान देने के साथ साथ पूंजी बाजार व अन्य वित्तीय सेवाओं के मामले में भी सहयोग कर सकेंगे। सान्या में चल रहे ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान पांचों देशों के प्राधिकृत बैंकों ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी शिखर सम्मेलन में शिरकत की है।
ब्रिक्स देशों के बीच आर्थिक, वित्त और व्यापार मामलों में सहयोग को लेकर बनी प्रतिबद्धता के तहत ही यह समझौता हुआ है। इस समझौते के पीछे ब्रिक्स देशों में सतत आर्थिक वृद्धि के साथ साथ दीर्घकालिक, मजबूत और संतुलित विश्व अर्थव्यवस्था में योगदान की इच्छा भी है।
चीनी राष्ट्रपति हू जिन्ताओ, रूस के राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव, ब्राजील के राष्ट्रपति दिलमा रोसेफ और दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति जैकोब जुमा के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा, ‘‘हमारे प्राधिकृत बैंकों ने वित्तीय क्षेत्र में सहयोग के लिए मसौदा समझौता किया है जिसमें स्थानीय मुद्रा में ऋण देने और पूंजी बाजार एवं वित्तीय सेवा के क्षेत्र में सहयोग पर जोर दिया गया है।’’
इससे पहले, शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए सिंह ने कहा कि प्राकृतिक व मानव संसाधनों के मामले में धनी ब्रिक्स देशों के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती अपने मौजूदा व्यापक संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल करने की है। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक निकायों में सुधार पर भी बल दिया ताकि इनमें वास्तविक प्रतिनिधित्व की तस्वीर दिखे।
शिखर सम्मेलन में एक घोषणा पत्र भी प्रस्तुत किया गया। इस घोषणा पत्र में कहा गया है, ‘‘हम पश्चिम एशिया, उत्तरी अफ्रीका और पश्चिमी अफ्रीका में मौजूदा घटनाक्रम को लेकर बेहद चिंतित हैं। हम उम्मीद करते हैं कि ये देश जनता की आकांक्षाओं के मुताबिक शांति, स्थिरता, समृद्धि और तरक्की हासिल करेंगे।’’ इसमें कहा गया है कि हमारा मानना है कि बल प्रयोग से परहेज करना चाहिए। सभी देशों की स्वतंत्रता, संप्रभुता, एकता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान होना चाहिए।’’