पूंजी बाज़ार नियामक संस्था, सेबी ने करीब डेढ़ महीने पहले 22 अक्टूबर को शेयर बाज़ार पर लिखने या बोलने वाले तमाम डिजिटल प्लेटफॉर्म को कंट्रोल करने के लिए जो मशविरा पत्र जारी किया है, उस पर वो अंततः सर्कुलर जारी करके अपना अंकुश कस देगी। पब्लिक से सलाह लेने की बात तो महज खानापूरी होती है। यह कंट्रोल उन लोगों के लिए है जो अभी तक सेबी के नियामक दायरे से बाहर हैं। बाकी जो भी पूंजी बाज़ार में मध्यवर्ती की भूमिका निभाते हैं, चाहे वे स्टॉक एक्सचेंज हो, उनमें लिस्टेड कंपनियां हों, ब्रोकर, सब-ब्रोकर हों, म्यूचुअल फंड हों या निवेश सलाहकार और रिसर्च एनालिस्ट, सब पर सेबी का नियंत्रण है। बाज़ार में कोई भी मैनुपुलेशन न हो, किसी तरह की धांधागर्दी न हो, इसके लिए सेबी के पास कठिन-कठोर कानूनों का सख्त शिकंजा है। फिर उसे उस दायरे में घुसने का क्या ज़रूरत आ पड़ी जो इलेक्ट्रॉनिक्स व इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉज़ी मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में आता है? सेबी को साल 1992 में बना सेबी एक्ट जो शक्तियां देता है, उसके बाहर वो तभी जा सकती है जब संसद उसे यह अधिकार दे। उसका मुख्य काम पूंजी बाज़ार का नियमन है, न कि लोगों के बोलने के अधिकार पर किसी भी तरह का अंकुश लगाना। फिर वो हद क्यों तोड़ रही है? अब गुरुवार की दशा-दिशा…
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