50 करोड़ में मुक्ति, फिर भी रिलायंस इंफ्रा और आरएनआरएल पर रोक

पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी ने अनिल अंबानी व उनके चार सहयोगियों – सतीश सेठ, एस सी गुप्ता, ललित जालान और जे पी चलसानी से कुल 50 करोड़ रुपए लेकर विदेशी वाणिज्यिक उधार (ईसीबी) और एफसीसीबी (विदेशी मुद्रा परिवर्तनीय बांडों) से जुटाई गई राशि के दुरुपयोग के आरोप से मुक्त कर दिया है। सेबी ने शुक्रवार को जारी एक कन्सेंट ऑर्डर के तहत ऐसा किया है। इसमें अनिल अंबानी व उनके सहयोगियों ने न तो आरोप को स्वीकार किया है और न ही उससे इनकार किया है। बता दें कि कन्सेंट ऑर्डर सेबी की ऐसी ही मजेदार व्यवस्था है जिसमें गडबड़ी करनेवाले एकमुश्त रकम देकर मामले से बरी हो जाते हैं।

मामला करीब चार साल से ज्यादा पुराना है जब सेबी को शिकायत मिली कि अनिल धीरूभाई अंबानी (एडीए) समूह की कंपनियों ने ईसीबी और एफसीसीबी से जुटाई रकम का इस्तेमाल शेयर बाजार में निवेश करने में किया है। सेबी ने प्रारंभिक जांच से पाया कि यह रकम समूह की ही कंपनी रिलायंस कम्युनिकेशंस (आरकॉम) के शेयरों में लगाई गई है। जांच से यह भी पता चला कि रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर और रिलायंस नेचुरल रिसोर्सेंज (आरएनआरएल) ने वित्त वर्ष 2006-07, 2007-08 और 2008-09 की सालाना रिपोर्टों में विदेश से जुटाई गई रकम को यील्ड मैनेजमेंट सर्टिफिकेट/डिपॉजिट में निवेश किया दिखाकर गलतबयानी की है।

इसके बाद रिलायंस इंफ्रा, आरएनआरएल, इन दोनों कंपनियों के चेयरमैन अनिल अंबानी, रिलायंस इंफ्रा के वाइस चेयरमैन सतीश सेठ, निदेशक एस सी गुप्ता, पूर्णकालिक निदेशक ललित जालान और निदेशक जे पी चलसानी पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने सेबी के कई रेगुलेशनों का उल्लंघन किया है। फिर सेबी ने रिलायंस इंफ्रा और आरएनआरएल के साथ-साथ इनसे जुड़े उक्त पांच दिग्गजों को भी कारण बताओ नोटिस जारी किए। इसके बाद दोनों कंपनियों व पांच अन्य आरोपियों की तरफ से सेबी के पास कन्सेंट ऑर्डर की लिखित पेशकश की गई।

सेबी की उच्चाधिकार प्राप्त सलाहकार समिति (एचपीएसी) ने इस पेशकश पर विचार किया और कुछ शर्तों से साथ कन्सेंट ऑर्डर को मंजूर कर लिया गया। इस तरह कई सालों से चल रहा मामला रफा-दफा हो गया। खास बात यह है कि दोनों कंपनियों से अलग-अलग लिया जा रहा 25-25 करोड़ रुपए का ‘सेटलमेंट चार्ज’ इन कंपनियों को नहीं, बल्कि अनिल अंबानी समेत इनके पांच निदेशकों से लिया जा रहा है। आरएनआरएल की तो सारी रकम अनिल अंबानी को अकेले देनी है। इन लोगों ने 10 जनवरी को आईसीआईसीआई बैंक से जारी 25-25 करोड़ रुपए के दो डिमांड ड्राफ्ट सेबी के पास जमा करा दिए हैं।

तय हुआ है कि रिलांयस इंफ्रा और आरएनआरएल दिसंबर 2012 तक शेयर बाजार में लिस्टेड किसी भी कंपनी में निवेश नहीं कर सकती हैं। हालांकि वे म्यूचुअल फंड में निवेश कर सकती हैं। साथ ही आईपीओ, ओपन ऑफर और बायबैंक में भी निवेश कर सकती हैं। सेबी की यही बंदिश अनिल अंबानी और उनके चार सहयोगियों पर दिसंबर 2011 तक लागू की गई है।

सेबी के इस आदेश पर रिलायंस इंफ्रा के प्रवक्ता का कहना है कि रिलायंस इंफ्रा ने जून 2010 में कंपनी व उसके निदेशकों के खिलाफ जारी कारण बताओ नोटिस का मसला स्वैच्छिक रूप से सुलझा लिया है। सेबी की कन्सेंट प्रणाली के तहत इसमें न तो दोष को स्वीकार किया गया है और न ही उससे इनकार किया गया है। इससे अनावश्यक और समय-खाऊ कानूनी प्रक्रिया का झंझट खत्म हो गया है। निदेशकों ने अपनी तरफ से सारा भुगतान किया है। इसलिए कंपनी पर सेटलमेंट शुल्क का कोई भार नहीं पड़ा है।

सेबी के आदेश के मुताबिक रिलायंस इंफ्रा और आरएनआरएल को अपने वैधानिक ऑडिटरों को रोटेट करने की नीति अपनानी पड़ेगी। इसलिए इन कंपनियों के मार्च 2010 के ऑडिटर 2010-11 से लेकर अगले तीन साल तक इनके ऑडिटर नहीं हो सकते।

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