देश में धन के धमनी-तंत्र भारतीय रिजर्व बैंक के खजाने पर मोदी सरकार की वक्री दृष्टि साल 2018 के मध्य में तब पड़ी, जब उसके पहले कार्यकाल के चार साल बीत चुके थे। तब रिजर्व बैंक के गवर्नर लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स के ग्रेजुएट और ऑक्सफोर्ड से लेकर येल यूनिर्विसिटी से एम.फिल व डॉक्टरेट करनेवाले कुशल अर्थशास्त्री ऊर्जित पटेल थे। ऊर्जित पटेल ने नोटबंदी का भी विरोध किया था। लेकिन उनकी एक न चली। 14 सितंबर 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रिजर्व बैंक से केंद्र सरकार को भारी धन देने का दबाव बनाया तो ऊर्जित पटेल ने इससे इनकार कर दिया। तब उसी बैठक में मोदी ने पटेल को ‘खज़ाने पर कुंडली मारकर बैठा सांप’ तक कह डाला था। दवाब इतना बढ़ा कि ऊर्जित पटेल ने अपना कार्यकाल खत्म होने के नौ महीने पहले ही 10 दिसंबर 2018 को इस्तीफा दे दिया। दो दिन बाद ही 12 दिसंबर 2018 को मोदी ने इस पद पर शक्तिकांत दास को नियुक्त कर दिया। फिर तो मोदी सरकार की चांदी हो गई। 2018-19 में रिजर्व बैंक ने अपने खजाने से ₹1,76,051 करोड़ केंद्र सरकार के हवाले कर दिए। फिर वो रकम नए रिकॉर्ड बनाती गई। 2023-24 में यह ₹2,10,874 करोड़ थी तो 2024-25 में ₹2,68,590 करोड़ हो चुकी है। रिजर्व बैंक पिछले सात साल में मोदी सरकार पर ₹9,29,488 करोड़ न्यौछावर कर चुका है, बाकायदा लाभांश देकर। अब मंगलवार की दृष्टि…
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