हमारे शेयर बाजार में पब्लिक या आम निवेशकों की भागीदारी लगातार घटती जा रही है। दूसरी तरफ विदेशी निवेशक लगातार इस स्थिति में बने हुए हैं कि उनके अकेले की ताकत पब्लिक समेत तमाम भारतीय निवेशकों के लगभग बराबर बैठती है। रेलिगेयर कैपिटल मार्केट्स की एक रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय कंपनियों की शेयरधारिता में आम निवेशकों का हिस्सा जून 2008 में 9.24 फीसदी था, लेकिन जून 2010 तक यह घटकर 8.16 फीसदी रह गया।
इस दौरान विदेशी निवेशकों का हिस्सा भी 17.39 फीसदी से घटकर 16.61 फीसदी पर आ गया है। लेकिन बीमा कंपनियों, म्यूचुअल फंडों, बैंकों व वित्तीय संस्थाओं ने अपनी हिस्सेदारी बढ़ा ली है। इन दो सालों में बीमा कंपनियों का हिस्सा 4.42 फीसदी से 5.24 फीसदी, घरेलू म्यूचुअल फंडों का हिस्सा 3.67 फीसदी से 3.97 फीसदी और बैंकों व वित्तीय संस्थाओं का हिस्सा 1.16 फीसदी से बढ़कर 1.93 फीसदी हो गया है।
रिसर्च रिपोर्ट में बीएसई-500 में शामिल कंपनियों को आधार बनाया गया है और इसमें सीएमआईई (सेंटर फॉर मीनिटरिंग इंडियन इकनॉमी) समेत तमाम स्रोतों से आधिकारिक आंकड़े जुटाए गए हैं। अभी वित्त मंत्रालय, पूंजी बाजार नियामक संस्था सेबी और स्टॉक एस्क्सचेंज कंनपी में प्रवर्तकों से भिन्न शेयरधारिता को पब्लिक का मानते हैं। लेकिन रिपोर्ट में पब्लिक शेयरधारिता के तहत बीमा, म्यूचुअल फंड, बैंक व वित्तीय संस्थाएं और एफआईआई (विदेशी संस्थागत निवेशक) के निवेश को नहीं गिना गया है।
रिपोर्ट में जुटाए गए आंकड़ों से पता चलता है कि हिस्से के रूप में विदेशी निवेशकों की स्थिति दो सालों में थोड़ी कमजोर जरूर पड़ी है। लेकिन रकम के लिहाज से वे पब्लिक ही नहीं, तमाम घरेलू संस्थाओं की सम्मिलित ताकत पर भी भारी पड़ते हैं। जून 2008 में बीएसई-500 सूचकांक में शामिल कंपनियों में विदेशी निवेशकों (एफआईआई + एडीआर + जीडीआर) का कुल निवेश 178.24 करोड़ डॉलर था, जबकि पब्लिक का 94.72 करोड़, बीमा कंपनियों का 45.32 करोड़, घरेलू म्यूचुअल फंडों का 37.60 करोड़ और बैंकों व वित्तीय संस्थाओं का 11.86 करोड़ डॉलर था। इस तरह कंपनियों के फ्लोटिंग स्टॉक (प्रवर्तकों के शेयरों के अलावा बाकी जारी शेयर) में सभी भारतीय निवेशकों का निवेश 189.5 करोड़ डॉलर है जो विदेशी निवेशकों की रकम से महज 11.26 करोड़ डॉलर अधिक है।
जून 2010 तक भी इस स्थिति में ज्यादा फर्क नहीं पड़ा है। इस दौरान विदेशी निवेशकों द्वारा भारतीय कंपनियों के शेयरों में लगाई गई रकम 210.41 करोड़ डॉलर थी। जबकि पब्लिक का निवेश 103.32 करोड़, बीमा कंपनियों का 66.32 करोड़, घरेलू म्यूचुअल फंडों का 50.29 करोड़ और बैंकों व वित्तीय संस्थाओं का निवेश 24.47 करोड़ डॉलर रहा है। इस तरह भारतीय निवेशकों का कुल निवेश 244.4 करोड़ डॉलर है जो विदेशी निवेशकों से महज 34 करोड़ डॉलर अधिक है।
रिपोर्ट का कहना है कि घरेलू म्यूचुअल फंड लगातार रिडेम्पशन के दवाब से परेशान हैं। इसलिए कंपनियों की शेयरधारिता में उनकी हिस्सेदारी 4 फीसदी से नीचे बनी हुई है, जबकि बीमा कंपनियों ने लगातार चौथी तिमाही में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाई है। म्यूचुअल फंडों को अपनी इक्विटी स्कीमों से साल भर के अंदर 220 करोड़ डॉलर का विमोचन झेलना पड़ा है।
चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में उपभोक्ता सामग्रियों, बिजली और आईटी क्षेत्र की कंपनियों में एफआईआई निवेश बढ़ा है। कंपनियों में एफआईआई के लिए खास आकर्षक रही हैं – दीवान हाउसिंग फाइनेंस, कल्पतरु पावर ट्रांसमिशन, श्रेई इंफ्रा और एवरॉन। दूसरी तरफ उन्होंने पहली तिमाही में इडिया बुल्स रीयल एस्टेट. जीटीएल, तमिलनाडु न्यूजप्रिंट और कुटोन्स में अपना निवेश सबसे ज्यादा घटाया है।