मानसून अच्छा है। समय पर है। इसलिए खेती-किसानी की हालत बेहतर रहेगी। बहुत साफ-सी बात है कि इसी के अनुरूप खाद व उर्वरक की मांग भी बढ़ेगी। इससे उर्वरक कंपनियों का धंधा चमकेगा। धंधा चमकेगा तो उनके शेयर भी चमकेंगे। लेकिन दिक्कत यह है कि उर्वरक कंपनियों में जब भी निवेश की बात आती है तो लोग आमतौर पर नागार्जुन फर्टिलाइजर्स और चंबल फर्टिलाइजर्स की ही चर्चा करते हैं। नागार्जुन फर्टिलाइजर्स के बारे में सालों-साल से चर्चा उठाई जाती रही है कि रिलायंस समूह इसका अधिग्रहण करने जा रहा है। शेयर थोड़ा उठता है। लेकिन फिर पुनर्मूषको भवः के अंदाज में घूम-फिरकर 30-35 रुपए के दायरे में आ जाता है।
उर्वरक क्षेत्र की सरकारी कंपनी राष्ट्रीय केमिकल्स एंड फर्टिलाइजर्स (आरसीएफ) की तरफ आम निवेशकों का ध्यान कम ही खींचा जाता है, जबकि यह कंपनी शांत भाव से बराबर प्रगति कर रही है और इसके शेयर को बाजार ठीकठाक भाव भी देता रहा है। अभी नागार्जुन फर्टिलाइजर्स का शेयर 11.82 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है तो चंबल फर्टिलाइजर्स का शेयर 10.41 के पी/ई अनुपात पर। लेकिन इन दोनों की ऐतिहासिक गति यही रही है। दूसरी तरफ आरसीएफ का शेयर (बीएसई – 524230, एनएसई – RCF) इस समय 18.51 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है, लेकिन चंद महीने पहले नवंबर 2010 में यह 31.03 और दिसंबर 2010 में 27.34 के पी/ई अनुपात पर चल रहा था।
असल में आरसीएफ की 551.69 करोड़ रुपए की इक्विटी में सरकार की हिस्सेदारी 92.5 फीसदी है और महज 7.5 फीसदी शेयर ही पब्लिक के पास हैं। इसलिए 4537 करोड़ रुपए के बाजार पूंजीकरण के बावजूद इसका फ्लोटिंग स्टॉक 453 करोड़ रुपए का ही है। फिर भी फ्लोटिंग स्टॉक में पब्लिक के हिस्से के 4,13,73,200 शेयर आते हैं जो इतनी पर्याप्त संख्या है कि इसमें कभी तरलता या लिक्विडिटी की समस्या नहीं आती। जैसे, कल ही बीएसई में इसके 2.55 लाख शेयरों में ट्रेडिंग हुई जिसमें से 17.14 फीसदी ही डिलीवरी के लिए थे। इसी तरह एनएसई में ट्रेड हुए 4.45 लाख शेयरों में से 24.43 फीसदी डिलीवरी के लिए थे। यानी, डे-ट्रेडर इस स्टॉक में पर्याप्त दिलचस्पी लेते हैं। वैसे भी यह ए ग्रुप का बीएसई-500 सूचकांक में शामिल शेयर है तो इसे लेकर कभी फंसने की स्थिति नहीं आएगी।
आरसीएफ इसी साल 10 फरवरी 2011 को अपने 52 हफ्तों के न्यूनतर स्तर 73.60 रुपए पर चला गया था। अब भी उसी रेंज में 82.25 रुपए पर है। इसका 52 हफ्तों का उच्चतम स्तर 132.25 रुपए का है जो इसने 15 नवंबर 2010 को हासिल किया था। अगर पी/ई अनुपात के लिहाज से देखें तो यह कई उर्वरक कंपनियों की तुलना में महंगा है। लेकिन पहुंच, मजबूती और साख को देखते हुए आरसीएफ बहुतों पर भारी है। एक तो सबसे बड़ी बात है कि इसके कभी भी इधर-उधर होने का खतरा नहीं है। दूसरे, कंपनी के सुजला, सुफला व उज्ज्वला जैसे ब्रांड किसानों की जुबान पर चढ़े हुए हैं। माइक्रोला और बायोला भी उसके ब्रांड हैं। तीसरे, इसका वितरण नेटवर्क काफी तगड़ा है।
कंपनी इसके अलावा मेथनॉल, सोडियम नाइट्रेट, सोडियम नाइट्राइट, अमोनिम बायोकार्बोनेट, मेथाइल अमीन्स, डाई मेथाइल फार्मेमाइड (डीएमएफ) और डाई मेथाइल एसीटामाइड जैसे बुनियादी रसायन भी बनाती है जो औद्योगिक उपभोग के लिए हैं। वह भारत में डीएमएफ बनानेवाली इकलौती कंपनी है। वित्तीय मोर्चे पर भी कंपनी की उपलब्धियां दुरुस्त हैं। पिछले तीन सालों में कंपनी की बिक्री 17.39 फीसदी और लाभ 18.56 फीसदी की सालाना चक्रवृद्धि दर से बढ़ा है। कंपनी का इक्विटी पर रिटर्न 13.37 फीसदी के ठीकठाक स्तर पर है।
अभी मार्च 2011 में बीती तिमाही व वित्त वर्ष की बात करें तो तिमाही स्तर पर बिक्री में 15.62 फीसदी और शुद्ध लाभ में 38.43 फीसदी का इजाफा हुआ है। हालांकि पूरे वित्त वर्ष 2010-11 में कंपनी की बिक्री 5642.11 करोड़ रुपए से 2.39 फीसदी घटकर 5507.11 करोड़ रुपए पर आ गई है, लेकिन शुद्ध लाभ इसी दौरान 234.87 करोड़ रुपए से 4.36 फीसदी बढ़कर 245.12 करोड़ रुपए हो गया है। उसका सालाना ईपीएस 4.44 रुपए है।
कंपनी में एफआईआई व डीआईआई ने दिसंबर से मार्च की तिमाही में अपना निवेश घटाया है। इस दौरान एफआईआई का निवेश 0.12 फीसदी से घटकर 0.06 फीसदी और डीआईआई का निवेश 2.14 फीसदी से घटकर 1.62 फीसदी हो गया है। हो सकता है कि इसी वजह से कंपनी का शेयर फरवरी में धूल चाटने लगा था। लेकिन एक बात साफ है कि देर-सबेर सरकार को भी प्रवर्तक के बतौर अपनी कंपनियों में इक्विटी हिस्सेदारी घटाकर 75 फीसदी पर लानी पड़ेगी। इसलिए आरसीएफ का एफपीओ आना ही है जिसमें उसकी 17.5 फीसदी इक्विटी बेची जाएगी। कहने का मतलब यह है कि आरसीएफ पर लंबी रेस का घोड़ा समझकर सुरक्षित दांव लगाया जा सकता है। वैसे, बाजार के कुछ पहुंचे हुए लोगों का कहना है कि दो महीने में यह 100 रुपए के आसपास जा सकता है। यानी, छोटी अवधि में भी करीब 20 फीसदी रिटर्न की गुंजाइश है।