रिजर्व बैंक पर भले ही केंद्र सरकार का पूरा मालिकाना हो, लेकिन वो कभी उसकी सेहत की चिंता नहीं करती, बल्कि राजा की तरह उससे वसूली करती रहती है। अमेरिका का केंद्रीय बैंक, फेडरल रिजर्व भी अपना सरप्लस सरकार को देता है, लेकिन राज्यों के सदस्य बैंकों को लाभांश और अतिरिक्त कोष में धन डालने के बाद। वो भी सीधे सरकार को नहीं, बल्कि अमेरिकी कोषागार की आम निधि में। यह निधि भारत के कंसोलिडेटेड फंड जैसी है। फेडरल रिजर्व सदस्य बैंकों को एक बंधा-बंधाया लाभांश ही देता है जो इस समय 6% है। बाकी खर्च निकालने और कम से कम 10 अरब डॉलर का फंड रखने के बाद बचा-खुचा लाभ ही सरकार को देता है, जिसे लाभांश नहीं, बल्कि रेमिटेंस कहा जाता है। यह भी जान लें कि फेडरल रिजर्व पर अमेरिकी सरकार नहीं, बल्कि सरकारी व निजी क्षेत्र का संयुक्त मालिकाना है। उसे 12 क्षेत्रीय बैंकों का नेटवर्क चलाता है। फेडरल रिजर्व के चेयरमैन को राष्ट्रपति चाहकर भी नहीं हटा सकता। अमेरिका और ब्रिटेन के केद्रीय बैंक सरकार से विचार-विमर्श के बाद ही उसे अपने अतिरिक्त सरप्लस का कुछ हिस्सा देते हैं। लेकिन जापान में सरकार तय करती है कि केंद्रीय बैंक उसे कितना दे सकता है। इन सारी विविधताओं के बीच मोटा नियम यह है कि केंद्रीय बैंक अपनी सरकार को जीडीपी के 0.05% से ज्यादा धन नहीं देता। हमारा रिजर्व बैंक इस बार केंद्र को ₹2.69 लाख करोड़ दे रहा है, जो ₹330.68 लाख करोड़ के जीपीपी का 0.81% है। अब शुक्रवार का अभ्यास…
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