देश के गहराते आर्थिक संकट और अवाम पर गहराती आपदा को छिपाने के लिए मोदी सरकार रोज़गार के आंकड़ों के साथ जबरदस्त हेरफेर और विचित्र व्याख्या कर रही है। जैसे, श्रम मंत्री मनसुख मंडाविया कहते हैं कि मोदीराज में 2014 से 2024 के दौरान कृषि क्षेत्र में रोज़गार 19% बढ़ा है, जबकि यूपीए राज में 2004 से 2014 के दौरान 16% घटा था। श्रम मंत्री को कौन बताए कि यह गर्व नहीं, शर्म की बात है कि मोदीराज के दौरान कृषि क्षेत्र में रोज़गार घटने के बजाय बढ़ा है। आज़ादी के बाद से ही कोशिश रही है कि कृषि से निकलकर ज्यादा से ज्यादा लोग उद्योग-धंधों में लगें ताकि उन्हें ज्यादा कमाई का रोज़गार मिल जाए। दुनिया की यही रीत है। आज हमारे यहां देश की 51% आबादी कृषि पर निर्भर है और करीब 46% श्रम-शक्ति खेती-किसानी में लगी है। वहीं, अमेरिका जैसे विकसित देश में मात्र 1.5% लोग खेती-किसानी में लगे हैं, जबकि वो घरेलू खपत पूरा करने के बाद दुनिया का अग्रणी खाद्य निर्यातक भी है। मोदी सरकार ने रोज़गार के आंकड़ों में यह भी धांधली की है कि ज्यादातर लोगों को स्वरोज़गार में लगा बताया है जिसमें वे महिलाएं भी शामिल हैं जो बिना किसी भुगतान के घर का काम करती हैं। सीएमआईई के मुताबिक देश में रोज़गार की दर अगस्त 2024 तक घटकर 37.8% पर आ चुकी है। अब शुक्रवार का अभ्यास…
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