मित्रों! 1 अप्रैल 2010 से लेकर अब तक हर हफ्ते सोमवार से शुक्रवार तक हर दिन एक-एक कर इसी जगह करीब ढाई सौ कंपनियों से आपका परिचय करा चुका हूं। बीएसई में कुल लिस्टेड कंपनियां सात हजार के आसपास हैं। अगर यह सिलसिला यूं ही हर दिन चलाता रहूं तब भी सभी लिस्टेड कंपनियों से आपका परिचय कराने में उन्नीस साल और लग जाएंगे। यह बात कहकर मैं दो चीजें जाहिर करना चाहता हूं। एक यह कि अर्थकाम का सफर बहुत-बहुत लंबा है। दो, इस कॉलम का मकसद आपको किसी शेयर को खरीदने के लिए उकसाना नहीं, बल्कि उस कंपनी से आपका मोटा-मोटी परिचय कराना है ताकि आप कॉरपोरेट दुनिया को समझ सकें और उस मौके को समझ सकें जो यह दुनिया पूंजी बाजार के जरिए आपसे अपना जोखिम बांटकर अपनी समृद्धि में हिस्सेदारी का दे रही है।
आज चर्चा ग्रेफाइट इंडिया (बीएसई – 509488, एनएसई – GRAPHITE) की। यह देश में ग्रेफाइट इलेक्ट्रोड बनाने की सबसे बड़ी कंपनी है और दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में शुमार है। दुनिया में इन इलेक्ट्रोडों को बनाने की कुल क्षमता का तकरीबन 6.5 फीसदी भाग कंपनी के पास है। उसने शुरुआत 1967 में अमेरिका के ग्रेट लेक्स कार्बन कॉरपोरेशन के साथ लेकर की थी। अभी उसके भारत में तीन संयंत्र – दुर्गापुर, बैंगलोर व नासिक में हैं, जबकि एक संयंत्र जर्मनी के नर्नबेर्ग इलाके में है। के के बांगुर कंपनी के चेयरमैन हैं।
ग्रेफाइट इलेक्ट्रोड स्टील मिल के इलेक्ट्रिक आर्क फरनेस में इस्तेमाल किए जाते हैं। कंपनी इसके अलावा कैलसाइन्ड पेट्रोलियम कोक, ग्रेफाइट उपकरण और ग्लास रेनफोर्स्ड प्लास्टिक पाइप व टैंक भी बनाती है। वह अपने उत्पादन का लगभग 65 फीसदी हिस्सा पचास से ज्यादा देशों को निर्यात करती है। उसने 35 मेगावॉट बिजली बनाने की सुविधाएं भी लगा रखी हैं। कंपनी की कुल इक्विटी 39.08 करोड़ रुपए है जो दो रुपए अंकित मूल्य के शेयरों में विभाजित है। इसका 57.23 फीसदी हिस्सा प्रवर्तकों और 42.77 फीसदी पब्लिक के पास है। पब्लिक के हिस्से में से 14.19 फीसदी शेयर एफआईआई और 9.77 फीसदी शेयर डीआईआई के पास हैं।
कंपनी की शुद्ध बिक्री (एक्साइज शुल्क को घटाकर) दिसंबर 2010 की तिमाही में साल भर पहले की तुलना में 21 फीसदी बढ़कर 278.9 करोड़ रुपए से 337.5 करोड़ रुपए हो गई। लेकिन शुद्ध लाभ 29.8 फीसदी घटकर 63 करोड़ रुपए से 44.2 करोड़ रुपए पर आ गया। इसकी खास वजह है कच्चे माल की लागत का 100.73 करोड़ से बढ़कर 165.03 करोड़ और स्टोर्स व स्पेयर पार्ट्स की लागत का 19.44 करोड़ से बढ़कर 36.77 करोड रुपए हो जाना। शुद्ध लाभ घटने का असर कंपनी के शेयरों पर पड़ा है। 4 फरवरी को उसके तिमाही नतीजों के बाद शेयर 92.55 से 79 रुपए तक जा चुका है। हालांकि कल यह बीएसई में 91.50 रुपए पर बंद हुआ है। बी ग्रुप का शेयर है। इसमें सर्किट लिमिट 20 फीसदी की है यानी इसमें एक दिन में 20 फीसदी की घट-बढ़ हो सकती है। हालांकि इस पर किसी की नजर नहीं है तो कारोबार ज्यादा नहीं होता। जैसे, कल बीएसई में इसके 12,793 शेयरों के सौदे हुए जिसमें से 76.67 फीसदी डिलीवरी के लिए थे। एनएसई में हुआ वोल्यूम 52,521 शेयरों का था जिसमें से 75.67 डिलीवरी के लिए थे।
सितंबर 2010 की तिमाही में भी बिक्री के 10.2 फीसदी बढ़ने के बावजूद कंपनी के शुद्ध लाभ में 6.5 फीसदी की कमी आई थी। लेकिन बिक्री का बढ़ना दिखाता है कि कंपनी का धंधा बढ़ रहा है। इधर कंपनी की योजना बिजली उत्पादन की क्षमता साल भर में 33 मेगावॉट के वर्तमान स्तर से बढ़ाकर 83 मेगावॉट करने की है। वह इस साल दिसंबर तक दुर्गापुर संयंत्र की क्षमता बढ़ा रही है।
लाभ पर दबाव के कारण कंपनी के शेयर इस समय दबे हुए हैं। कंपनी का ठीक पिछले बारह महीनों का ईपीएस 9.39 रुपए है और इस तरह उसका शेयर 91.50 रुपए के मौजूदा भाव पर मात्र 9.75 के पी/ई अनुपात पर चल रहा है। शेयर की बुक वैल्यू ही 73.87 रुपए है। कंपनी लाभांश भी बराबर देती रही है जो उसकी मजबूती का संकेत है। छोटे नहीं, बल्कि लंबे समय की सोच वाले इस शेयर में चाहें तो निवेश कर सकते हैं।