देश में गरीबी कम होने पर योजना आयोग के ताजा आंकड़ों के बाद संसद में नया बवाल मच गया है। लेकिन योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने इस पर सफाई दी है कि इन आंकड़ों को किसी भी सरकारी योजना के लाभार्थियों से जोड़कर देखना सही नहीं है। अहलूवालिया पहले ही इसी तरह का तर्क देते रहे हैं।
बता दें कि सोमवार को योजना आयोग की ओर से जारी आंकड़ों में कहा गया है कि 2004-05 से लेकर 2009-10 के दौरान देश में गरीबी सात फीसदी घटी है और गरीबी रेखा अब 32 रुपए प्रतिदिन से घटकर 28.65 रुपए हो गई है। इस पर मंगलवार को राज्यसभा में विपक्ष से सरकार को चारों तरफ से घेरने की कोशिश की।
इस दौरान मंगलवार दोपहर को मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने एक संवाददाता सम्मेलन कर अपनी सफाई पेश की। उन्होंने कहा कि आयोग ने पहले भी कई बार कहा है कि इन आंकड़ों का सरकारी योजना का लाभ उठाने वालों से कोई लेना देना नहीं है। उनका कहना था कि ”इस कवायद का मकसद ये तय करना नहीं है कि गरीबी रेखा के आंकड़े सहीं हैं या नहीं या गरीबी रेखा को और ऊपर करनी चाहिए। इसका असल मकसद ये जानना होता है कि गरीबी रेखा से नीचे रह रहे लोगों की जिदंगी में सरकारी योजनाओं का कोई सकारात्मक असर हो रहा है या नहीं।”
अहलूवालिया ने ये भी कहा कि 2009-10 के आंकडो़ से ये पूरी तरह तय कर पाना मुश्किल है कि सरकारी कल्याणकारी योजनाओं से संतोषजनक फायदा हो रहा है या नहीं क्योंकि 2009 में सूखा पड़ा था और सूखे के दौरान गरीबी बढ़ जाती है। इसी के मद्देनजर राष्ट्रीय सैम्पल सर्वे ने साल 2011-12 के लिए एक बड़ा सर्वेक्षण करने का फैसला किया है।
उन्होंने कहा कि इसके आधे आंकड़े जुटा लिए गए हैं और जून 2012 तक के आंकड़े अभी जमा किए जा रहे हैं। उनके अनुसार 2013 तक इसके पूरे आंकड़े आ जांएगे और उसके बाद ही पता चलेगा कि 2011-12 तक देश में कितने गरीब हैं।
योजना आयोग ने सोमवार को जो आंकड़े जारी किए हैं, उनके अनुसार साल 2009-2010 के गरीबी आंकड़े कहते हैं कि पिछले पांच साल के दौरान देश में गरीबी 37.2 फीसदी से घटकर 29.8 फीसदी पर आ गई है। आयोग ने गरीबी रेखा में बदलाव करते हुए कहा है कि अब शहर में 28.65 रुपए प्रतिदिन और गांवों में 22.42 रुपए खर्च करने वाले को गरीब नहीं कहा जा सकता। पहले ये मानक शहरों में 32 रूपए औरर गांवों में ये 26 रूपए प्रतिदिन था। नए फार्मूले के अनुसार शहरों में महीने में 859.60 रुपए और ग्रामीण इलाकों में 672.80 रुपए से अधिक खर्च करने वाला व्यक्ति गरीब नहीं है।