महंगाई पर पवार की सरकार से उलट वाणी, फल-सब्जियों का हम से क्या

मुद्रास्फीति ऐसा गंभीर और संवेदनशील मुद्दा है कि इस पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से लेकर वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी और वित्त राज्यमंत्री नमो नारायण मीणा तक बड़ी विनम्रता से बोलते हैं। लेकिन कृषि मंत्री शरद पवार इतने मुंह-फट हो गए हैं कि लगता ही नहीं कि उन्हें जनता या सरकार किसी की भी प्रतिक्रिया की कोई परवाह है। मंगलवार को पवार ने कहा कि सरकार फल और सब्जियों की कीमतों से कोई लेनादेना नहीं है और वह इन पर अंकुश नहीं लगा सकती।

लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान उनका कहना था, “सरकार फल व सब्जियों को गेहूं और चावल की तरह सीधे किसानों से नहीं खरीद सकती। इसलिए इनकी कीमतों पर अंकुश नहीं लगा सकती। हालांकि इनकी उत्पादकता बढ़ाने की कोशिश की जा रही है ताकि इनके दाम नियंत्रण में रहें।” उन्होंने कहा कि हाल में प्याज के दाम में आया उछाल तात्कालिक था। महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश व राजस्थान नें नवंबर-दिसंबर 2010 में बेमौसम की बारिश से खरीफ की प्याज-फसल को नुकसान हुआ था। इसलिए दाम अचानक बढ़ गए।

हालांकि, फल व सब्जियों पर पवार का यह बयान कुछ हद तक सच हो सकता है। लेकिन राजनीति में इस तरह के ‘सच’ को बदजुबानी माना जाता है। वैसे, पवार जैसे मंजे हुए राजनीतिज्ञ का यह बयान मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआई को लाने का पैंतरा भी हो सकता है क्योंकि सरकार बराबर कह रही है कि विदेशी पूंजी के सहयोग के निजी क्षेत्र सीधे किसानों से माल खरीदेगा और कोल्ड-चेन का तंत्र खड़ा कर सकता है जिससे हर साल हजारों करोड़ रुपए की फल-सब्जियों को बरबाद होने से रोका जा सकता है। वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा विदेश से लेकर देश तक में इस तरह के तर्क बराबर फेंकते ही रहते हैं।

लेकिन मुद्रास्फीति को लेकर वित्त मंत्रालय बहुत संजीदा है। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान सदस्यों द्वारा जताई गई चिंता को शांत करते हुए कहा कि बढ़ती अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति का कुछ दबाव तो बना रहेगा। लेकिन वितरण व्यवस्था को दुरुस्त कर इसके असर को कम किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि पिछले साल फरवरी में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) को सुधारने के बारे में कुछ मुख्यमंत्रियों की एक समिति बनाई गई थी। इसकी रिपोर्ट अभी तक आई नहीं है।

उनका कहना था कि उत्पादक को जितना मूल्य मिल रहा है और ग्राहक जितना दाम चुका रहा है, दोनों में बड़ा अंतर है। हमें इसे (थोक व खुदरा मूल्यों के अंतर को) ठीक करने के लिए कुछ उपाय करने होंगे। लेकिन यह मसला अकेले केंद्र सरकार द्वारा हल नहीं किया जा सकता। इसमें राज्य सरकारों के भी सहयोग की जरूरत है।

वहीं, राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में वित्त राज्यमंत्री नमो नारायण मीणा ने माना कि खाद्य मुद्रास्फीति की ऊंची दर आम आदमी पर प्रतिकूल असर डाल रही है। सरकार इस स्थिति से निपटने के लिए तमाम उपायों पर विचार कर रही है। इसमें किसानों की मंडी और मोबाइल बाजार खोलना शामिल है।

वित्त राज्यमंत्री मीणा ने बताया कि केंद्र सरकार राज्य सरकारों को इस काम में सहयोग देगी। साथ ही कंप्यूटरीकरण के जरिए पीडीएस को मजबूत बनाया जाएगा। इसके अलावा एपीएमसी (एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केटिंग कमिटी) एक्ट की समीक्षा की जाएगी ताकि कृषि उत्पादों की मार्केटिंग व वितरण से जुड़ी समस्याओं को सुलझाया जा सके।

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